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कसाय पाहड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार (११०) बारस णव छ तिणि य किट्टीओ होति अध व अणंताओ।
एककम्हि कसाये तिग तिग अधवा अणंताओ ॥१६३॥
७०५. विहासा । ७०६. जइ कोहेण उवट्ठायदि तदो बारस संगहकिट्टीओ होति । ७०७. माणेण उवढिदस्स णव संगहकिट्टीओ। ७०८. पायाए उवट्टिदस्स छ संगहकिट्टीओ । ७०९. लोभेण उवद्विदस्त तिणि संगहकिट्टीओ। ७१०. एवं वारस णव छ तिणि च । ७११. एक्ककिस्से संगहकिट्टीए अणंताओ किट्टीओ त्ति एदेण कारणेण अधवा अणंताओ त्ति । ७१२. केवडियाओ किट्टीओ त्ति अत्थो सपत्तो । ७१३. कम्हि कसायम्हि कदि च किट्टीओ त्ति एवं सुत्तं । ७१४. एकेकम्हि कसाये तिण्णि तिणि संगहकिट्टीओ त्ति एवं तिग तिग । ७१५. एक्वेकिस्से संगहकिट्टीए अणंताओ किट्टीओ त्ति एदेण अधवा अणंताओ जादा ।
७१६. किट्टीए किं करणं ति एत्थ एका भासगाहा । ७१७.तिस्से समुक्त्तिणा ।
संज्वलनक्रोधादि कपायोंकी बारह, नौ, छह और तीन कृष्टियाँ होती हैं, अथवा अनन्त कृष्टियाँ होती हैं । एक एक कषायमें तीन तीन कृष्टियाँ होती हैं, अथवा अनन्त कृष्टियाँ होती हैं ॥१६३॥ ।
चूर्णिमू०--उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है-यदि क्रोधकषायके उदयके साथ क्षपकश्रेणी चढ़ता है, तो उसके बारह संग्रहकृष्टियाँ होती हैं। मानकपायके उदयके साथ क्षपकश्रेणी चढ़नेवाले जीवके नौ संग्रहकृष्टियाँ होती है। मायाकपायके उदयके साथ उपस्थित होनेवाले जीवके छह संग्रहकृष्टियाँ होती हैं और लोभकषायके उदयके साथ उपस्थित होनेवाले जीवके तीन संग्रहकृष्टियाँ होती हैं। इस प्रकार यह भाष्यगाथाके प्रथम चरण 'बारह, नौ, छह, तीन' का अर्थ है। एक एक संग्रहकृष्टिकी अवयव या अन्तरकृष्टियाँ अनन्त होती है इस कारणसे गाथामें 'अथवा अनन्त होती है। ऐसा पद कहा है। इस प्रकार मूलगाथाके 'कृष्टियाँ कितनी होती है। इस प्रथम प्रश्नका अर्थ समाप्त हो जाता है । अव 'किस कषायमें कितनी कृष्टियाँ होती है' मूलगाथाके इस दूसरे पदका अर्थ करते हैंएक एक कषायमें तीन तीन संग्रहकृष्टियाँ होती हैं, अतएव भाष्यगाथामे 'तीन तीन' ऐसा पद कहा गया है। एक एक संग्रहकृष्टिकी अनन्त अवयवकृष्टियाँ होती हैं, इस कारणसे भाष्यगाथामें 'अथवा अनन्त होती हैं। ऐसा पद कहा है ।।७०५-७१५।।
चूर्णिस०-कृष्टि करनेकी अवस्थामे कौनसा करण होता है, मूलगाथा द्वारा उठाए गये इस तीसरे प्रश्नरूप अर्थमें एक भाष्यगाथा निबद्ध है। उसकी समुत्कीर्तना की जाती है।॥७१६-७१७॥