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कसाय पाहुड सुत्त [ १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार
तह चेव किट्टीकरणद्धाए चरिमसमए मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्तसहस्वाणि हाइण अट्टवस्गिमं तो मुहुत्तम्भहियं जादं । ६७६. तिन्हं घादिकम्माणं ठिदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । ६७७ णामा- गोद-वेदणीयाणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
६७८ किट्टीओ करेंतो पुव्वफद्दयाणि अपव्यफद्दयाणि च वेदेदि, किड्डीओ वेददि । ६७९. किट्टीकरणद्धा मिट्ठायदि परमद्विदीए आवलियाए सेसाए । ६८०. से काले किट्टीओ पवेसेदि । ६८१. ताथे संजलणाणं द्विदिबंधो चत्तारि मासा | ६८२. द्विदिसंतकम्पमट्ट वस्साणि । ६८३. तिन्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो द्विदिसंतकम्मं च संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । ६८४ [ वेदणीय-] णामा-गोदाणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । ६८५. ट्ठिदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
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६८६. अणुभागसंतकम्मं कोहसंजलणस्स जं संतकम्पं समयुणाए उदयावलियाए च्छदिल्लिगाए तं सव्वधादी । ६८७. संजलणाणं जे दो आवलियबंधा दुसमयूणा ते देसवादी । तं पुण फयगढ़ । ६८८. सेसं किट्टीगदं । ६८९. तम्हि चेव पढमसमए कोहस्स पढमसंगह किट्टीदो पदेसग्ग मोकड्डियूण पडमट्ठिदिं करेदि । ६९०. ताहे कोहस्स पडमाए संगहकिट्टीए असंखेज्जा भागा उदिण्णा । ६९१. एदिस्से चेव कोहस्स पढमा संगहकिट्टीए असंखेज्जा भागा वज्झति । ६९२. सेसाओ दो संगह किट्टीओ ण कृष्टिकरणकालके अन्तिम समयमे मोहनीय कर्मका स्थितिसत्त्व संख्यात सहस्र वर्षों से घटकर अन्तर्मुहूर्तसे अधिक आठ वर्षप्रमाण हो जाता है । शेष तीन घातिया कर्मोंका स्थितिसत्त्व संख्यात सहस्र वर्ष है । तथा नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मका स्थितिसत्त्व असंख्यात सहस्र वर्प है ॥६७३-६७७॥
चूर्णिसू० - कृष्टियोको करनेवाला पूर्व -स्पर्धको और अपूर्व - स्पर्धकोका वेदन करता है, किन्तु कृष्टियोका वेदन नहीं करता । संज्वलन क्रोधकी प्रथमस्थितिमे आवलीमात्र शेप रहने - पर कृष्टिकरणकाल समाप्त हो जाता है । कृष्टिकरणकालके समाप्त होनेपर अनन्तर समयमे कृष्टियोंको द्वितीय स्थिति से अपकर्पण कर उदद्यावली के भीतर प्रवेश करता है । उस समय में चारो संज्वलनोका स्थितिबन्ध चार मास है और स्थितिसत्त्व आठ वर्ष है । शेष तीन घातिया कर्मों का स्थितिबन्ध और स्थितिसत्त्व संख्यात सहस्र वर्ष है | वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका स्थितिवन्ध संख्यात सहस्र वर्ष और स्थितिसत्त्व असंख्यात सहस्र वर्ष है || ६७८-६८५॥ चूर्णिसू० - संज्वलनक्रोधका जो अनुभागसत्त्व समयोन उद्यावलीके भीतर उच्छिटावलीके रूपसे अवशिष्ट अवस्थित है वह सत्त्व सर्वघाती है। संज्वलन कपायोके जो दो समय कम दो आवली - प्रमाण नवक-बद्ध समयप्रबद्ध हैं, वे देशघाती हैं । उनका वह अनुभागसत्त्व स्पर्धकस्वरूप है । शेष सर्व अनुभागसत्त्व कृष्टिस्वरूप है । उसी कृष्टिवेदक - कालके प्रथम समयमे ही क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे प्रदेशायका अपकर्षण करके प्रथमस्थितिको करता
। उस समय मे क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिके असंख्यात वहुभाग उदीर्ण अर्थात् उदयको प्राप्त होते हैं । तथा इसी क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिके असंख्यात बहुभाग बन्धको प्राप्त होते हैं । शेष