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कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार (१२२) पढमा च अणंतगुणा विदियादो णियमसा दु अणुभागो।
तदियादो पुण विदिया कमेण सेसा गुणेणहिया ॥१७५॥
७९६. विहासा । ७९७. संगहकिट्टि पडुच्च कोहस्स तदियाए संगहकिट्टीए अणुभागो थोवो । ७९८. विदियाए संगहकिट्टीए अणुभागो अणंतगुणो । ७९९. पडमाए संगहकिट्टीए अणुभागो अणंतगुणो । ८००. एवं माण-माया-लोभाणं पि ।
८०१. मूलगाहाए तदियपदं का च कालेणेत्ति एस्थ छ भासगाहाओ । ८०२. तासिं समुक्कित्तणा च विहासा च ।। (१२३) पढमसमयकिट्टीणं कालो वस्सं व दो व चत्तारि।
अट्ट च वस्साणि हिदी विदियद्विदीए समा होदि ॥१७६॥
८०३. विहासा । ८०४. जदि कोधेण उवहिदो किट्टीओ वेदेदि, तदो तस्स पढमसमए वेदगस्स मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्ममह वस्साणि । ८०५. माणेण उवद्विदस्स पडमसमयकिट्टीवेदगस्स हिदिसंतकम्मं चत्तारि वस्साणि । ८०६. मायाए उवढिदस्स
क्रोधसंज्वलनकी प्रथम संग्रहकृष्टि द्वितीय संग्रहकृष्टि से अनुभागकी अपेक्षा नियमसे अनन्तगुणी है । पुनः तृतीय संग्रहकृष्टि से द्वितीय संग्रहकृष्टि भी अनन्तगुणी है। इसी क्रमसे मान, माया और लोभ संज्वलन की तीनों तीनों संग्रहकृष्टियाँ तृतीयसे द्वितीय और द्वितीयसे प्रथम उत्तरोत्तर अनन्तगुणी जानना चाहिए ॥१७५॥
चूर्णिसू०-अब उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है-संग्रहकृष्टिकी अपेक्षा क्रोधसंज्वलनकी तृतीय संग्रहकृष्टिमे अनुभाग अल्प है। द्वितीयसंग्रहकृष्टिमे अनुभाग अनन्तगुणा है । प्रथम संग्रहकृष्टिमे अनुभाग अनन्तगुणा है। इसी प्रकार मान, माया और लोभसंज्वलनकी तीनो संग्रहकृष्टियोंमे अनुभागका क्रम जानना चाहिए ॥७९६-८००॥
चूर्णिसू०-मूलगाथाका तृतीयपद 'का च कालेण' है, इसके अर्थमे छह भाष्यगाथाएँ हैं। उनकी समुत्कीर्तना और विभाषा की जाती है ॥८०१-८०२॥
प्रथम समयमें कृष्टियोंका स्थितिकाल एक वर्प, दो वर्ष, चार वर्ष और आठ वर्ष है । द्वितीयस्थिति और अन्तर स्थितियोंके साथ प्रथमस्थितिका यह काल कहा गया है ॥१७६॥
चूर्णिसू०-अव इसकी विभाषा करते हैं-यदि क्रोधसंज्वलनके उदयके साथ उपस्थित हुआ कृष्टिओको वेदन करता है, तो उसके प्रथम समयमे कृष्टिवेदकके मोहनीयकर्मका स्थितिसत्त्व आठ वर्ष है । मानसंज्वलनके उदयके साथ उपस्थित प्रथम समय कृष्टिवेदकके मोहनीयकर्मका स्थितिसत्त्व चार वर्ष है । मायासंज्वलनके उदयके साथ उपस्थित प्रथम समय