Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 945
________________ गा० २०३] चारित्रमोहक्षपक कृष्टिवेदकक्रिया-निरूपण ८३७ ९५६. विहासा । ९५७. समयपवद्धसेसयं जिस्से हिदीए णस्थि तदो विदियाए द्विदीए ण होज्ज, तदियाए हिदीए ण होज्ज, तदो चउत्थीए ण होज्ज । एवमुक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तीसु द्विदीसु ण होज्ज समयपबद्धसेसयं । ९५८. आवलियाए असंखेज्जदिभागं गंतूण णियमा समयपबद्धसेसएण अविरहिदाओ द्विदीओ। ९५९. जाओ ताओ अविरहिदहिदीओ ताओ एगसमयपबद्धसेसएण अविरहिदाओ थोवाओ। ९६०. अणेगाणं समयपबद्धाणं सेसएण अविरहिदाओ असंखेज्जगुणाओ । ९६१. पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं समयपबद्धाणं सेसएण अविरहिदाओ असंखेज्जा भागा। पाये जाते हैं और उसमें अर्थात् उस क्षपककी अष्टवर्षप्रमित स्थितिके भीतर उत्तरपद होते हैं ॥२०॥ विशेषार्थ-तीसरी भाष्यगाथामे सामान्यस्थितियोके अन्तर्गत असामान्य स्थितियाँ प्रधानरूपसे कही गई थी। इस चौथी गाथामे असामान्य स्थितियोमेसे अन्तरित सामान्य स्थितियोका निरूपण किया गया है। इस गाथाका अभिप्राय यह है कि सामान्य स्थितियोके अन्तररूपसे असामान्य स्थितियाँ पाई जाती हैं। वे कमसे कम एकले लगाकर दो, तीन आदिके क्रमसे बढ़ते हुए अधिक से अधिक आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण निरन्तररूपसे पाई जाती हैं, यह बात पहले बतलाई जा चुकी है। इस प्रकारसे पाई जानेवाली उन असामान्य स्थितियोकी चरिमस्थितिसे ऊपर जो अनन्तर समयवर्ती स्थिति पाई जाती है, उसमे भी नियमसे समयप्रबद्ध-शेष और भवबद्ध-शेष पाये जाते है। ये भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेष कितने और किस रूपसे पाये जाते हैं, इस बातके बतलानेके लिए गाथा-सूत्रकारने 'उत्तरपदाणि' यह पद दिया है, जिसका भाव यह है कि वे भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेष एक, दो आदिके क्रमसे बढ़ते हुए अधिकसे अधिक पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण पाये जाते हैं। यहाँ इतना और विशेप जानना चाहिए कि ये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेष उस एक अनन्तर-उपरिम स्थितिमे ही नहीं पाये जाते हैं, अपि तु एक आदिके क्रमसे बढ़ते हुए उत्कृष्टतः वर्षपृथक्त्वप्रमाणवाली स्थितियोंमे सर्वत्र क्रमशः अवस्थित रूपसे पाये जाते हैं। चूर्णिसू०-अब इस चौथी भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है-समयप्रवद्धशेप जिस स्थितिमें नहीं है, उससे उपरिम द्वितीय स्थितिमे न हो, तृतीय स्थितिमे न हो, उससे आगे चतुर्थ स्थितिमे न हो, इस प्रकार उत्कर्पसे आवलीके असंख्यातवे भागमात्र स्थितियोमे भी समयप्रबद्धशेष नही पाये जा सकते हैं। किन्तु आवलीके असंख्यातवे भागकाल आगे जाकर नियमसे समयप्रबद्धशेषसे अविरहित ( संयुक्त ) स्थितियाँ प्राप्त होगी। जो वे समयप्रवद्धशेपसे अविरहित स्थितियाँ पाई जाती हैं, उनमे एक समयप्रवद्ध-शेषसे अविरहित स्थितियाँ थोड़ी है। अनेक समयप्रवद्धोके शेषसे अविरहित स्थितियाँ असंख्यातगुणी हैं। पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र समयप्रबद्धोके शेषसे अविरहित स्थितियाँ असंख्यात बहुभाग प्रमाण है ॥९५६-९६१॥

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