Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 938
________________ कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्र मोह-क्षपणाधिकार " ९०३. विहासा । ९०४. जत्तो पाए अंतरं कदं तत्तो पाए समयपत्रद्धो छसु आवलियासु गदासु उदीरिज्जदि । ९०५. अंतरादो कदादो तत्तो छसु आवलियासु गदासु तेण परं छण्हमावलियाणं समयपवद्धा उदये अच्छुद्धा भवति । ९०६. भवबद्धा पुणणियमा सच्चे उदये संछुद्धा भवति । ९०७. तो विदियभासगाहा । ८३० । चूर्णिसू० - जिस पाये ( स्थल ) पर अन्तर किया है, उस पायेपर बॅधा हुआ समयप्रवद्ध छह ओवलियोंके व्यतीत होनेपर उदीरणाको प्राप्त होगा समाप्त करने के अनन्तर समयसे लेकर छह आवलियोके व्यतीत होनेपर आवलियोके समयप्रबद्ध उदयमे अछूते रहते हैं । किन्तु भववद्ध सभी उदयमे संक्षुब्ध रहते हैं ॥९०३-९०६॥ अतएव अन्तरकरण उससे परे सर्वत्र छह समय प्रबद्ध नियमसे विशेषार्थ - अन्तरकरण करनेके प्रथम समय में आवलीप्रमाण नवकवद्ध समयप्रबद्ध उदयमे अछूते रहते हैं । पुनः द्वितीय समय में भी इतने ही समयप्रबद्ध उदयमें अछूते रहते हैं । इस प्रकार अन्तरकरणके प्रथम समय से लेकर आवलीप्रमितकाल के चरम समय तक आवलीप्रमाण नवकवद्ध समयप्रबद्ध उदयमे अछूते रहते हैं । प्रथम आवलीके व्यतीत होने पर अनन्तर समयोमें एक-एक समयप्रबद्ध यथाक्रमसे तब तक अधिक होता जाता है जब तक कि अन्तरकरणसे लेकर दो आवलीप्रमाण फाल व्यतीत न हो जाय । दो आवलीकाल पूरा होनेपर दो आवलीप्रमित नबकबद्ध समयप्रबद्ध उदयमे अछूते रहते । तदनन्तर तीसरी आवलीके प्रथम समयसे लेकर उसके पूरे होने तक एक-एक समयप्रबद्ध अधिक होता हुआ चला जाता है और तीसरे आवलीके अन्तिम समयमे तीन आवलियोके नवकबद्ध समयप्रबद्ध अनुदीरित या उदयमें अछूते पाए जाते हैं । इसी प्रकार चौथी आवलीके प्रथम समय से लेकर उसके अन्तिम समय तक एक एक समय प्रबद्ध बढ़ता हुआ चला जाता है और चौथी आवलीके अन्तिम समयमे चार आवलियोंके समयप्रवद्ध अनुदीरित पाये जाते हैं । पुनः प्रतिसमय एक एक समयप्रबद्ध बढ़ता हुआ पॉचवीं आवलीके अन्तिम समय तक चला जाता है और इस प्रकार पॉचवी आवलीके अन्तिम समयमे पॉच आवलियोके नवकवद्ध समयप्रबद्ध उदीरणा-रहित पाये जाते हैं । पुनः उक्त क्रमसे एक-एक समयप्रबद्ध बढ़ता हुआ छठी आवलीके अन्तिम समय तक चला जाता है और छठी आवली पूर्ण होनेपर छह आवलियोके नवकवद्ध समयप्रबद्ध उदयमें अछूते अर्थात् उदीरणावस्थासे रहित पाये जाते हैं । इस कारण चूर्णिकारने ठीक ही कहा है कि अन्तरकरणसे लगाकर छह आवलीकालके बीतनेपर उससे परे छह आवलियोके नवकबद्ध सर्व समयप्रबद्ध उदयमे अछूते या अनुदीरित पाये जाते है । इसका अभिप्राय यह समझना चाहिए कि इन नवकवद्ध समयप्रबद्धोके अतिरिक्त शेष सर्व समयप्रबद्ध उदयमें संक्षुध्ध अर्थात् उदय या उदीरणा पर्यायसे परिणत पाये जाते हैं । परन्तु भववद्ध समस्त ही समयप्रबद्ध नियमसे उदयमे संक्षुब्ध पाये जाते हैं । 10- अब इससे आगे द्वितीय भाष्यगाथा अवतीर्ण होती है ॥ ९०७ ॥ चूर्णिसू०

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