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पदम्मि पंच भार. काच कालेगा. पहले
बासमास । मालगातापित
गा० १७० ] चारित्रमोहक्षपक-कृष्टिगतविशेप-निरूपण ____ ८११
७४८. एत्तो तदियाए मूलगाहाए समुक्त्तिणा । (११६) किट्टी च पदेसग्गेणणुभागग्गेण का च कालेण ।
अधिगा समा व हीणा गुणेण किं वा विसेसेण ॥१६९॥ __७४९. एदिस्से तिणि अत्था । ७५०. किट्टी च पदेसग्गेणेत्ति पडमो अत्थो । एदम्मि पंच भासगाहाओ । ७५१. अणुभागग्गेणेत्ति विदियो अत्थो। एत्थ एका भासगाहा । ७५२. का च कालेणेत्ति तदिओ अत्थो । एत्थ छन्भासगाहाओ । ७५३. तासि समुकित्तणं विहासणं च । ७५४. पढमे अत्थे भासगाहाणं समुक्तित्तणा । (११७) विदियादो पुण पढमा संखेजगुणा भवे पदेसग्गे।
विदियादो पुण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया ॥१७०॥
७५५. विहासा । ७५६. तं जहा । ७५७. कोहस्स विदियाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं थोवं । ७५८. पडमाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं संखेज्जगुणं तेरसगुणमेत्तं ।।
चूर्णिसू०-अब इससे आगे तीसरी मूलगाथाकी समुत्कीर्तना की जाती है।।७४८॥
कौन कृष्टि किस कृष्टिसे प्रदेशाप्रकी अपेक्षा, अनुभागाग्रकी अपेक्षा और कालकी अपेक्षा अधिक है, हीन है, अथवा समान है ? इस प्रकार गुणोंकी अपेक्षा एक कृष्टिसे दूसरी कृष्टि में क्या विशेषता है १ ॥१६९॥
चूर्णिसू०-इस मूलगाथाके तीन अर्थ है । 'कौन कृष्टि किस कृष्टिसे प्रदेशाग्रकी अपेक्षा समान है, हीन है या अधिक है, यह प्रथम अर्थ है । इस प्रथम अर्थमें पॉच भाष्यगाथाएँ निबद्ध हैं। 'कौन कृष्टि किस कृष्टिसे अनुभागाग्रकी अपेक्षा समान है, हीन है या अधिक है,' यह द्वितीय अर्थ है। इस द्वितीय अर्थमें एक भाष्यगाथा निबद्ध है। 'कौन कृष्टि किस कृष्टिसे कालकी अपेक्षा समान है, हीन है या अधिक है' यह तृतीय अर्थ है। इस तृतीय अर्थमे छह भाष्यगाथाएँ निबद्ध हैं। 'गुणेण किं वा विसेसेण' यह पद प्रदेशादि तीनो अर्थोके विशेषणरूपसे निर्दिष्ट किया गया है ॥७४९-७५२॥
चूर्णिसू-अब उन भाष्यगाथाओकी समुत्कीर्तना और विभाषा एक साथ की जाती है। उनमेंसे पहले प्रथम अर्थमे निबद्ध भाष्यगाथाओंकी समुत्कीर्तना करते हैं ॥७५३-७५४॥
क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे उसकी ही प्रथम संग्रह कृष्टि प्रदेशाग्रकी अपेक्षा संख्यातगुणी होती है। किन्तु द्वितीय संग्रहकृष्टिसे तृतीय संग्रह कृष्टि विशेप अधिक होती है। इस प्रकार यथाक्रमसे शेष अर्थात मान, माया और लोभसम्बन्धी तीनों तीनों संग्रह कृष्टियाँ विशेष अधिक होती हैं ॥१७०॥
चूर्णिस० -अब उक्त भाष्यगाथाकी विभापा करते हैं । वह इस प्रकार है-क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिमे प्रदेशाग्र अल्प है। इससे प्रथम संग्रहकृष्टिमे प्रदेशाग्र संख्यातगुणित हैं, जिनका कि प्रमाण तेरहगुणा है ॥७५५-७५८॥