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कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार असंखेज्जा भागा आगाइदा । २२२. तम्हि द्विदिखंडए पुण्णे इत्थिवेदो संछुन्भमाणो संछुद्धो । २२३. ताधे चेव मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्साणि ।
२२४. से काले सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगो। २२५. सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगस्स द्विदिवंधो मोहणीयस्स थोवो । २२६. णाणावरणदसणावरण-अंतराइयाणं द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । २२७. णामा-गोदाणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो। २२८. वेदणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ । २२९. ताधे द्विदिसंतकम्म मोहणीयस्स थोवं । २३०. तिण्डं घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जगुणं । २३१. णामा-गोदाणं डिदिसंतकम्ममसंखेज्जगुणं । २३२.वेदणीयस्स हिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । २३३. पडमद्विदिखंडए पुणे मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं । २३४. सेसाणं द्विदिसंतकम्मं असंखेज्जगुणहीणं । २३५. द्विदिबंधो णामा-गोद-वेदणीयाणं असंखेज्जगुणहीणो । २३६. धादिकम्माणं द्विदिवंधो संखेज्जगुणहीणो ।
२३७. तदो द्विदिखंडयपुधत्ते गदे सत्तण्हं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेज्जदिभागे गदे णामा-गोद-वेदणीयाणं संखेज्जाणि वस्साणि द्विदिवंधो । २३८. तदो द्विदि खंड यपुधत्ते गदे सत्तण्हं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु णाणावरणदसणावरण-अंतराइयाणं संखेज्जवस्सट्ठिदिसंतकम्मं जादं । २३९. तदो पाए [धादिस्त्रीवेद संक्रान्त हो जाता है। उसी समयमे मोहनीयका स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षप्रमाण हो जाता है ॥२१७-२२३॥
चूर्णिसू०-तदनन्तर कालमे वह सात नोकपायोका प्रथम समयवर्ती संक्रामक होता है। सात नोकषायोके प्रथम-समयवर्ती संक्रामकके मोहनीयका स्थितिबन्ध सबसे कम होता है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिवन्ध संख्यातगुणा होता है। नाम और गोत्र कर्मका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है और वेदनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है । उस समय मोहनीयका स्थितिसत्त्व सबसे कम है। तीन घातिया कर्मों का स्थितिसत्त्व असंख्यातगुणा है। नाम और गोत्रका स्थितिसत्त्व असंख्यातगुणा है । वेदनीयका स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है । प्रथम . स्थितिकांडकके पूर्ण होनेपर मोहनीयका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा हीन हो जाता है । शेष कर्मोंका स्थितिसत्त्व असंख्यातगुणा हीन होता है । तभी नाम, गोत्र और वेदनीयका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा हीन होता है और घातिया कर्मोका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है ॥२२४-२३६॥
चूर्णिसू०-तत्पश्चात् स्थितिकांडकपृथक्त्वके बीतनेपर सात नोकषायोके क्षपणकालके संख्यातवे भागके बीत जानेपर नाम, गोत्र और वेदनीयका स्थितिवन्ध संख्यात वर्षप्रमाण हो जाता है । तत्पश्चात् स्थितिकांडकपृथक्त्वके वीतनेपर और सात नोकषायोंके क्षपणाकालके संख्यात वहुभागोके व्यतीत होनेपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षकी स्थितिवाला हो जाता है । इस स्थलसे लेकर घातिया कर्मोके प्रत्येक स्थितिवन्ध