________________
७९२
कलाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार पि कसायाणं जाणि अपुन्वफद्दयाणि तत्थ चरिमस्स अपुचफद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदग्गं चदुहं पि कसायाणं तुल्लमणंतगुणं ।
५१५. पडमसमयअस्सकपणकरणकारयस्स जंपदेसग्गमोकड्डिज्जदि तेण कम्मस्स अवहारकालो थोवो। ५१६. अपुन्वफद्दएहिं पदेसगुणहाणिहाणंतरस्स अवहारकालो असंखेज्जगुणो । ५१७. पलिदोवमवग्गमूलमसंखेज्जगुणं । ५१८. पडमसमये णिव्वत्तिज्जमाणगेसु अपुवफदएसु पुच्चफदएहितो ओकड्डियूण पदेसग्गमपुव्वफयाणमादिवग्गणाए बहुअं देदि । विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं देदि । एवमणंतराणंतरेण गंतूण कषायोंके जो अपूर्वस्पर्धक हैं उनमे अन्तिम अपूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणामें अविभागप्रतिच्छेदान चारों ही कषायोंके परस्पर तुल्य और अनन्तगुणित हैं ।।५१०-५१४॥
विशेषार्थ-उक्त कथनको स्पष्टरूपसे समझनेके लिए चारो संज्वलन कषायोंकी जो आदि वर्गणाएँ हैं, उनका प्रमाण अंकसंदृष्टिमे १०५।८४१७०।६०। तथा क्रोध संज्वलनादिके अपूर्वस्पर्धकोकी शलाकाओंका प्रमाण क्रमशः १६।२०।२४।२८। यथाक्रमसे कल्पना करना चाहिये । आदिवर्गणाको अपनी अपनी अपूर्वस्पर्धक-शलाकाओसे गुणा करनेपर प्रत्येक कषायके अन्तिम स्पर्धककी आदि वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोका प्रमाण आ जाता है, जो परस्परमें तुल्य होते हुए भी अपने आदिवर्गणाकी अपेक्षा अनन्तगुणित होता है । यथा
___ क्रोध मान माया लोभ आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद
१०५ ८४ ७०६० अपूर्वस्पर्धकशलाका
४१६ ४२० ४२४ ४२८ अन्तिमस्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद १६८० १६८० १६८० १६८०
___अब अपूर्वस्पर्धकोका प्रमाण निकालने के लिए एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर-स्थापित भागहारका प्रमाण जाननेके लिए उपरिम अल्पबहुत्व कहते हैं
चूर्णिसू०-प्रथमसमयवर्ती अश्वकर्णकरण-कारकके जो प्रदेशाग्र अपकृष्ट किये जाते हैं उससे कर्मका अवहारकाल अल्प है। अपूर्वस्पर्धकोकी अपेक्षा प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका अवहारकाल असंख्यातगुणा है और इससे पल्योपमका वर्गमूल असंख्यातगुणा है ॥५१५-५१७॥
विशेषार्थ-उक्त अल्पबहुत्वका आशय यह है कि उत्कर्पण-अपकर्पण भागहारसे असंख्यातगुणित और पल्योपमके प्रथम वर्गमूलसे असंख्यातगुणित हीन पल्योपमके असंख्यातवें भागसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धकोके अपवर्तित करनेपर जो भाग लब्ध हो, तावन्मान क्रोधादिके अपूर्वस्पर्धक होते हैं।
अब पूर्व-अपूर्वस्पर्धकोंमे तत्काल अपकर्षित द्रव्यके निपेकविन्यासक्रमको बतलाते हैं
चूर्णिसू०-प्रथम समयमे निर्वर्तित किये जानेवाले अपूर्वस्पर्धकोसे अपकर्पण करके अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणामे बहुत प्रदेशाग्रको देता है । द्वितीय वर्गणाम विशेप हीन देता है । इस प्रकार अनन्तर-अनन्तररूपसे जाकर अपूर्वस्पर्धककी अन्तिम वर्गणामें विशेष हीन देता है।