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कसाय पाटुड सुत्त । १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार ५२५. बंधेण णिव्वत्तिज्जंति अपुचफयं पहममादि कादूण जाव लदासमाणफयाणमणंतमागोत्ति । ५२६. एसा सव्या परूवणा पढमसमयअस्सकण्णकरणकारयस्स ।
५२७. एत्तो विदियसमए तं चेव द्विदिखंडयं, तं चेव अणुभागखंडयं, सो चेव हिदिवंधो । ५२८. अणुभागवंधो अणंतगुणहीणो | ५२९. शुणसेही असंखेज्जगुणा । ५३०. अपुव्वफदयाणि जाणि पढपसपए णिव्यत्तिदाणि विदियसमये ताणि च णिव्यत्तयदि अण्णाणि च अपुव्वाणि तदो असंखेज्जगुणहीणाणि ।
५३१. विदियसमये अपुचफदएसु पदेसग्गरस दिज्जमाणयस्स सेढिपरूवणं वत्तइस्सामो । ५३२. तं जहा । ५३३. विदियसमए अपुव्वफयाणमादिवग्गणाए पदेसग्गं बहुअंदिज्जदि । विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं । एवमणंतरोवणिधाए विसेसहीणं दिजदि ताव जाव जाणि विदियसमए अपुव्वाणि अपुवफयाणि कदाणि । ५३४. तदो चरिमादो वग्गणादो पहयसमए जाणि अपुव्वफयाणि कदाणि तेसिमादिवग्गणाए दिज्जदि पदेसग्गमसंखेन्जगुणहीणं । ५३५.तदो विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं दिज्जदि । तत्तो पाए अणंतरोवणिधाए सव्वत्थ विसेसहीणं दिज्जदि । पुचफयाणयादिवग्गणाए विसेसहीणं दिज्जदि । सेसासु वि विसेसहीणं दिज्जदि । ५३६. विदि यसमये अपुव्वफदएसु वा
चूर्णिसू०-वन्धकी अपेक्षा प्रथम अपूर्वस्पर्धकको आदि करके लता समान स्पर्धकोके अनन्तवें भागतक स्पर्धक निवृत्त होते है। (हॉ, इतना विशेप है कि उदय-स्पर्धकोकी अपेक्षा ये बन्ध-स्पर्धक अनन्तगुणित हीन अनुभाग शक्तिवाले होते है।) यह सब प्ररूपणा अश्वकर्णकरणके प्रथम समयकी है ॥५२५-५२६॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे अश्वकर्णकरणके दूसरे समयकी प्ररूपणा करते हैद्वितीय समयमे वही स्थितिकांडक होता है, वही अनुभागकांडक होता है और वही स्थितिवन्ध होता है। अनुभागवन्ध अनन्तगुणा हीन होता है और गुणश्रेणी असंख्यातगुणी होती है। जिन अपूर्वस्पर्धकोको प्रथम समयमे निवृत्त किया था, द्वितीय समयमे उन्हे भी निर्वृत्त करता है और उनसे असंख्यातगुणित हीन अन्य भी अपूर्वस्पर्धकोको निर्वृत्त करता है ॥५२७-५३०॥
चूर्णिसू०-अव द्वितीय समयमे अपूर्वस्पर्धकोमें दिये जानेवाले प्रदेशाग्रकी श्रेणीप्ररूपणाको कहेगे। वह इस प्रकार है-द्वितीय समयमे अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणामे बहुत प्रदेशाग्र को देता है । द्वितीय वर्गणामे विशेप हीन प्रदेशाग्रको देता है। इस प्रकार अनन्तरोपनिधारूप क्रमसे विशेष हीन प्रदेशाग्र तव तक दिया जाता है जब तक कि द्वितीय समयमे निवृत्त किये गये अपूर्वस्पर्धकोकी अन्तिम वर्गणा प्राप्त न हो जाय । पुनः उस अन्तिम वर्गणासे प्रथम समयमे जो अपूर्वस्पर्धक किये हैं उनकी आदिवर्गणामे असंख्यातगुणित हीन प्रदेशाग्रको देता है । उससे द्वितीय वर्गणामें विशेप हीन प्रदेशाग्रको देता है। इस स्थलपर यहाँसे लेकर आगे सर्वत्र अनन्तरोपनिधासे सर्व वर्गणाओमे विशेप हीन प्रदेशाग्रको देता है। पूर्वस्पर्धकाकी आदिवर्गणामें विशेप हीन प्रदेशाग्र देता है और शेप वर्गणाओंमें भी विशेप हीन प्रदेशाग्र