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गा० १६१ ] चारित्रमोहक्षपक अश्वकर्णकरणक्रिया-निरूपण
७९५ पुव्वफदएसु वा एककिस्से वग्गणाए जं दिस्सदि पदेसग्गं तमपुव्यफद्दय-आदिवग्गणाए बहुअं । सेसासु अणंतरोवणिधाए सव्यासु विसेसहीणं । - ५३७. तदियसमए वि एसेव कमो । णवरि अपुव्वफयाणि ताणि च अण्णाणि च णिव्यत्तयदि । ५३८. तस्स वि पदेसग्गस्स दिज्जमाणयस्स सेढिपरूवणं। ५३९. तदियसमए अपुव्याणमपुवफदयागयादिवग्गणाए पदेसग्गं बहुअं दिज्जदि । विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं । एवमणंतरोवणिधाए विसेसहीणं ताव जाव जाणि य तदियसमये अपुवाणमपुजफयाणं चरिमादो वग्गणादो त्ति । तदो विदियसमए अपुचफयाणमादिवग्गणाए पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं । तत्तो पाए सव्वत्थ विसेसहीणं । ५४०. जं दिस्सदि पदेसग्गं तमादिवग्गणाए बहुअं । उवरिमणंतरोवणिधाए सव्यस्थ विसेसहीणं । ५४१. जहा तदियसमए एस कमो तार जाव पडममणुभागखंडयं चरिमसमयअणुकिण्णं ति ।
५४२. तदो से काले अणुभागसंतकम्मे णाणत्तं । ५४३. तं जहा । ५४४. लोभे अणुभागसंतकम्म थोवं । ५४५. मायाए अणुभागसंतकम्यमणंतगुणं । ५४६. माणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । ५४७. कोहस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । ५४८. को देता है। द्वितीय समयमें अपूर्वस्पर्धकोमे अथवा पूर्वस्पर्धकोमे एक-एक वर्गणामे जो प्रदेशाग्र दिखता है वह अपूर्वस्पर्धककी आदि वर्गणामें बहुत है और शेप सर्व वर्गणाओमे अनन्तरोपनिधाके क्रमसे विशेप हीन है ॥५३१-५३६॥
चूर्णिसू०-तृतीय समयमें भी यही क्रम है। विशेषता केवल यह है कि उन्हीं अपूर्वस्पर्धकोंको तथा अन्य भी अपूर्वस्पर्धकोको निर्वृत्त करता है । अब उन अपूर्वस्पर्धकोको दिये जानेवाले प्रदेशाग्रकी श्रेणीप्ररूपणा करते है-तृतीय समयमे अपूर्व अपूर्वस्पर्धकोकी आदि। वर्गणामे बहुत प्रदेशाग्र दिया जाता है। द्वितीय वर्गणामे विशेष हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है। इस प्रकार अनन्तरोपनिधासे विशेप हीन प्रदेशाग्र तब तक दिया जाता है, जब तक कि तृतीय समयमें निर्वृत्त अपूर्व अपूर्वस्पर्धकोकी अन्तिम वर्गणा नहीं प्राप्त हो जाती है । उससे द्वितीय समयमें निवृत्त अपूर्वस्पर्धकोकी आदि वर्गणामें असंख्यातगुणित हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है। यहाँसे लेकर इस स्थलपर सर्वत्र द्वितीयादि वर्गणाओमें विशेष हीन ही ही प्रदेशाग्र दिया जाता है । जो प्रदेशाग्र दिखाई देता है वह प्रथम वर्गणामे बहुत है और इससे आगे अनन्तरोपनिधासे सर्वत्र विशेप हीन है। जिस प्रकार तृतीय समयमे यह क्रम निरूपण किया गया है, उसी प्रकार प्रथम अनुभागकांडकका अन्तिम समय जब तक उत्कीर्ण न हो जाय, तब तक यही क्रम जानना चाहिए ॥५२७-५४१॥
__ चूर्णिम् ०-अब इसके अनन्तरकालमै अनुभागसत्त्वमें जो विशेपता है, वह कहेगे । वह इस प्रकार है- संज्वलन लोभमें अनुभागसत्त्व सबसे कम है। इससे संज्वलन मायामे अनुभागसत्त्व अनन्तगुणा है । इससे संज्वलनमानमे अनुभागसत्त्व अनन्तगुणा है। इससे