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कसाय पाहुड सुन्त
- ३४६. तदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा ।
(९२) उदओ च अनंतगुणो संपहि-बंधेण होइ अणुभागे । सेकाले उदयादो संपहि-बंधो अनंतगुणो ॥ १४५॥
३४७. विहासा । ३४८. जहा । ३४९. से काले अणुभागबंधो थोवो । ३५०. से काले चेव उदओ अनंतगुणो । ३५१. अस्सि समए बंधो अनंतगुणो । ३५२. अस्सि चेत्र समए उदओ अनंतगुणो ।
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[ १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार
३५३. चउत्थीए भासगाहाए समुत्तिणा ।
(९३) गुणसेढि अनंतगुणेणूणाए वेदगो दु अणुभागे । गणणादियंतसेढी पदेस - अग्गेण बोद्धव्वा ॥ १४६॥
३५४. विहासा । ३५५. जहा । ३५६. अस्सि समए अणुभागुदयो बहुगो । सेकाले अनंतगुणहीणो । एवं सव्वत्थ । ३५७ पदेसुदयो अस्सि समये थोवो । से चूर्णिसू ० - अब तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ॥ ३४६ ॥ अनुभागकी अपेक्षा साम्प्रतिक बन्ध से साम्प्रतिक उदय अनन्तगुणा होता है । इसके अनन्तरकालमें होनेवाले उदयसे साम्प्रतिक-बन्ध अनन्तगुणा है ॥ १४५ ॥
चूर्णि सू० - इस गाथाकी विभाषा इस प्रकार है- विवक्षित समय के अनन्तरकालमें होनेवाला अनुभागबन्ध अल्प है । इस अनुभागबन्धसे तदनन्तरकालमे ही होनेवाला अनुभागउदय अनन्तगुणा है । अनन्तर समयभावी अनुभाग उदयसे इस समयमे होनेवाला अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है और इस समयमे होनेवाले अनुभागबन्धसे इसी समयमे ही होनेवाला अनुभाग- उदय अनन्तगुणा है || ३४७ - ३५२॥
विशेषार्थ - भाष्यगाथामें जो बात पूर्वानुपूर्वीके क्रमसे कही है, चूर्णिसूत्रोंमें वही बात पश्चादानुपूर्वीके क्रमसे कही है । अनन्तरकाल भावी उदयसे साम्प्रतिक-बन्धके अनन्तगुणित होनेका कारण यह है कि समय-समय बढ़नेवाली अनन्तगुणी विशुद्धि के माहात्म्यसे आगे आगे प्रतिक्षण अनुभागका उदय क्षीण होता हुआ चला जाता है ।
चूर्णिसू०
० - अव चौथी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।। ३५३ ||
यह संक्रामक संयत अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभागका प्रतिसमय अनन्तगुणित to गुणश्रेणीरूपसे वेदक होता है । किन्तु प्रदेशाग्रकी अपेक्षा गणनातिक्रान्त अर्थात् असंख्यातगुणित श्रेणीरूपसे वेदक जानना चाहिए || १४६ ॥
चूर्णिसू ० - उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा इस प्रकार है - इस वर्तमान समयमें अनुभागका उदय बहुत होता है । इसके अनन्तरकालमे अनुभागका उदय अनन्तगुणा हीन होता है । इस प्रकार सर्वत्र अर्थात् आगे आगेके समयोमे अनुभागका उदय अनन्तगुणा हीन जानना चाहिए । प्रदेशोदय इस वर्तमान समय में अल्प होता है । इसके अनन्तरकालमें