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.कलाय प्राहुड सुत्त [ १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार
३६०. एदिस्से गाहाए तिणि भासगाहाओ । ३६१ : तासि समुत्तिणा तहेव विहासा च । ३६२. जहा ।
(९५) वंधोदहिं णियमा अणुभागो होदि णंतगुणहीणो ।
से काले से काले भज्जो पुण संकमो होदि ॥ १४८ ॥
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३६३. विहासा । ३६४. जहा । ३६५. अस्सि समए अणुभागबंधो बहुओ । ३६६. से काले अनंतगुणहीणो । ३६७. एवं समए समए अनंतगुणहीणो । ३६८. एवमुदयो वि कायन्यो । ३६६. संकमो जाव अणुभागखंडयमुकीरेदि ताव तत्तिगो तत्तिगो अणुभागसंकमो । अण्णम्हि अणुभागखंडये आढते अनंतगुणहीणो अणुभागसंकमो | ३७०. एतो विदियाए गाहाए समुक्कित्तणा ।
(९६) गुणसेढि असंखेजा च पदेसग्गेण संकमो उदओ । से काले से काले भजो बंधी पदेसग्गे ॥ १४९ ॥
३७१. विहासा । ३७२ पदेसुदयो अस्सि समए थोवो । से काले असंखेज्जगुण । एवं सन्वत्थ । ३७३. जहा उदयो तहा संकमो वि कायव्वो । ३७४ पदेस
चूर्णिसू० - इस मूलगाथाके अर्थका व्याख्यान करनेवाली तीन भाष्यगाथाएँ हैं । उनकी समुत्कीर्तना और विभाषा इस प्रकार है ॥ ३६०-३६२॥
अनुभाग, बन्ध और उदयकी अपेक्षा तदनन्तर- काल तदनन्तर- कालमें नियमसे अनन्तगुणितहीन होता है । किन्तु संक्रमण भजनीय है || १४८ ||
चूर्णिसू० ० - उक्त गाथाकी विभाषा इस प्रकार है - इस वर्तमान समयमे अनुभागवन्ध बहुत होता है और तदनन्तर कालमे अनन्तगुणित हीन होता है । इस प्रकार समय-समय मे अनन्तगुणित हीन होता जाता है । इसी प्रकार अनुभाग- उदयकी भी प्ररूपणा करना चाहिए । अर्थात् वर्तमान क्षणमे अनुभागोदय बहुत होता है और तदुत्तर क्षणमें अनन्तगुणा हीन होता जाता है । संक्रमण जब तक एक अनुभागकांडकका उत्कीरण करता है, तब तक तो अनुभागसंक्रमण उतना उतना ही होता रहता है । परन्तु अन्य अनुभागकांडक के आरम्भ करनेपर उत्तरोत्तर क्षणोमें अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणा हीन होता जाता है || ३६३-३६९॥ अब इससे आगे दूसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते है ॥ ३७० ॥
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प्रदेशाग्रकी अपेक्षा संक्रमण और उदय उत्तरोत्तर कालमें असंख्यातगुणित श्रेणिरूप होते हैं । किन्तु बन्ध प्रदेशाग्र में भजनीय है ॥ १४९ ॥
चूर्णिसू० - इस भाष्यगाथाकी विभापा इस प्रकार है - प्रदेशोदय इस समयमें अल्प होता है, तदनन्तर समयमे असंख्यातगुणित होता है । इसी प्रकार सर्वत्र अर्थात् आगे आगे के समयो में जानना चाहिए | जैसी उदयकी प्ररूपणा की है, वैसी ही संक्रमणकी भी