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गा० १६०] चारित्रमोहक्षपक-उत्कर्षणादिक्रिया-निरूपण
४५३. उक्कड्डणादो ओकड्डणादो चजहण्णगो णिक्खेवो थोवो । ४५४. जहणिया अधिच्छावणा ओकड्डणादो च उक्कड्डणादो च तुल्ला अणंतगुणा । ४५५. वाघादेण ओकड्डणादो उक्कस्सिया अधिच्छावणा अणंतगुणा । ४५६. अणुभागखंडयमेगाए बग्गणाए अदिरित्तं । ४५७. उक्स्सयमणुभागसंतकम्मं बंधो च विसेसाहिया ।
४५८. एत्तो तदियभासगाहाए समुक्त्तिणा विहासा च । (१०७) वड्डीदु होदि हाणी अधिगा हाणीदु तह अवट्ठाणं ।
गुणसेढि असंखेजा च पदेसग्गेण बोद्धव्वा ॥१६०॥
४५९. विहासा । ४६० जं पदेसग्गमुक्कड्डिज्जदि सा वड्डि त्ति सण्णा । ४६१. जमोकडिज्जदि सा हाणि त्ति सण्णा । ४६२. जण ओकड्डिज्जदि, ण उक्कड्डिज्जदि पदेसग्गं तमवट्ठाणं त्ति सण्णा । ४६३. एदीए सण्णाए एक्कं हिदि वा पडुच्च सव्वाओ वा द्विदीओ पडुच्च अप्पाबहुअं । ४६४. तं जहा । ४६५. वड्डी थोवा । ४६६. हाणी असंखेज्जगुणा । ४६७. अवट्ठाणमसंखेज्जगुणं । ४६८. अक्खवगाणुवसामगस्स पुण सव्वाओ द्विदीओ एगहिदि वा पडुच्च वड्डीदो हाणी तुल्ला वा, विसेसाहिया वा, विसेसहीणा वा । अवट्ठाणमसंखेज्जगुणं।
चूर्णिमू०-उत्कर्षण और अपकर्षणकी अपेक्षा जघन्य निक्षेप स्तोक है । इससे जघन्य अतिस्थापना अपकर्षण और उत्कर्षणकी अपेक्षा परस्पर समान होते हुए भी अनन्तगुणी है। व्याघातसे अपकर्षणकी अपेक्षा उत्कृष्ट अतिस्थापना अनन्तगुणी है । इससे अनुभाग-कांडक एक वर्गणासे अधिक है । उससे उत्कृष्ट अनुभागसत्त्व और बन्ध विशेष अधिक हैं॥४५३-४५७॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना और विभाषा एक साथ करते हैं ॥४५८॥
वृद्धि अर्थात् उत्कर्षणसे हानि अर्थात् अपकर्षण अधिक होता है और हानिसे अवस्थान अधिक है। यह अधिकका प्रमाण प्रदेशाग्रकी अपेक्षा असंख्यातगुणित श्रेणीरूप जानना चाहिए ॥१६॥
चूर्णिसू०-उक्त गाथाकी विभाषा इस प्रकार है-जो प्रदेशाग्र उत्कर्षित किये जाते हैं, उनकी वृद्धि' यह संज्ञा है । जो प्रदेशाम अपकर्षित किये जाते हैं, उनकी 'हानि' यह संज्ञा है। जो प्रदेशाग्र न अपकर्पित किये जाते हैं और न उत्कर्षित किये जाते हैं, उनकी 'अवस्थान' यह संज्ञा है। इस संज्ञाके अनुसार एक स्थितिकी अपेक्षा, अथवा सर्व स्थितियोकी अपेक्षा अल्पवहुत्व होता है। वह इस प्रकार है-वृद्धि अल्प होती है, उससे हानि असंख्यातगुणी होती है और उससे अवस्थान असंख्यातगुणा होता है । (यह उपयुक्त अल्पवहुत्व क्षपक और उपशामककी अपेक्षा जानना चाहिए । ) किन्तु अक्षपक और अनुपशामकके तो सभी स्थितियोकी अपेक्षा अथवा एक स्थितिकी अपेक्षा वृद्धिसे हानि तुल्य भी है, अथवा विशेष अधिक भी है, अथवा विशेष हीन भी है। किन्तु अवस्थान असंख्यातगुणा है।४५९-४६८॥