Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 892
________________ ७८४ कसाय पाहुंड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार ४४५. सम्भावसण्णं' वत्तइस्सामो। ४४६. तं जहा। ४४७. पढमफद्दयप्पहुडि अणंताणि फद्दयाणि ण ओकड्डिजंति । ४४८. ताणि केत्तियाणि १ ४४९. जत्तियाणि जहण्णअधिच्छावणफद्दयाणि जहण्णणिक्खेवफद्दयाणि च तत्तियाणि । ४५०. तदो एत्तियत्तियाणि फद्दयाणि अधिच्छिद्रण तं फद्दयमोकडिज्जदि । एवं जाव चरिमफद्दयं ति ओकड्डदि अणंताणि फद्दयाणि । ४५१. चरिमफद्दयं ण उक्कड्डदि । ४५२. एवमणंताणि फद्दयाणि चरिमफयादो ओसक्कियूण तं फद्दयमुक्कड्डदि । विशेपार्थ-उदयावलीसे बाहिरी समस्त स्थितियोमें स्थित सभी अनुभाग-स्पर्धकोका उत्कर्षण और अपकर्षण हो सकता है, इस प्रकारका यह वन्धानुलोमी स्थूल अर्थ है, वास्तविक नहीं, क्योंकि, अनुभाग-विषयक उत्कर्षण-अपकर्षणकी प्रवृत्ति जघन्य अतिस्थापना-निक्षेपप्रमाण स्पर्धकोंको छोड़कर शेप स्पर्धकोकी ही होती है। यहाँ यह शंका की जा सकती है कि इस प्रकारका यह उपदेश गाथाकारने क्यो दिया ? इसका उत्तर यह है कि उनका यह उपदेश स्थितिकी अपेक्षा जानना चाहिए, क्योकि, उदयावलीसे लेकर सभी स्थितिविशेषोमें सभी अनुभागस्पर्धक पाये जाते हैं । इसलिए उन स्थितियोके अपकर्षण या उत्कर्षण किये जानेपर उनमे स्थित सभी अनुभाग-स्पर्धक भी अपकर्षित या उत्कर्षित होते हैं । दूसरे, स्थितियोमें अवस्थित परमाणुओसे पृथग्भूत अनुभागस्पर्धक नहीं पाये जाते हैं। इस अभिप्रायकी अपेक्षा उदयावलीमे प्रविष्ट अनुभागोको छोड़कर शेष सभी अनुभाग स्थितिकी अपेक्षा उत्कर्षित या अपकर्षित होते हैं, ऐसा ग्रन्थकारने कहा है। चूर्णिमू०-अब सद्भावसंज्ञक सूक्ष्म अर्थको कहेंगे । वह इस प्रकार है-प्रथम स्पर्धकसे लेकर अनन्त स्पर्धक अपकर्पित नहीं किये जाते हैं। वे स्पर्धक कितने हैं ? जितने जघन्य अतिस्थापना-स्पर्धक हैं और जितने जघन्य निक्षेप-स्पर्धक हैं, उतने हैं। इसलिए एतावन्मान अतिस्थापनारूप स्पर्धकोको छोड़कर तदुपरिम स्पर्धक अपकर्षित किया जाता है। इस प्रकार क्रमशः बढ़ते हुए अन्तिम स्पर्धक तक अनन्त स्पर्धक अपकर्पित किये जाते हैं। ( इस प्रकार अपकर्षण-सम्बन्धी सूक्ष्म अर्थ कहकर अव उत्कर्षण-सम्वन्धी सूक्ष्म अर्थ कहते हैं-) चरम स्पर्धक उत्कर्पित नहीं किया जाता है, उपचरिम स्पर्धक नहीं उत्कर्पित किया जा सकता है । इस प्रकार अन्तिम स्पर्धकसे नीचे अनन्त स्पर्धक उतरकर अर्थात् चरम स्पर्धकसे जघन्य अतिस्थापनानिक्षेपप्रमाण स्पर्धक छोड़कर जो स्पर्धक प्राप्त होता है, वह स्पर्धक उत्कर्पित किया जाता है और उसे आदि लेकर उससे नीचेके शेप सर्व स्पर्धक उत्कर्षित किये जाते हैं॥४४५-४५२॥ अव अनुभाग-सम्बन्धी उत्कर्पण-अपकर्पण-विपयक जघन्य, उत्कृष्ट अतिस्थापनानिक्षेप आदि पदोके अल्पवहुत्वको कहते हैं १ टिठदिविवक्खमकादण अणुभाग चेव पहाणभावेण घेत्तण तट्विसयाणमोकड्डुक्कट्टणाण पयुत्ति यूनि क्कमणिरूवण सम्भावसण्णा णाम | जयव०

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