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फसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार ठिदिवंधो असंखेजगुणो । १३९.तिण्हं धादिकम्माणं ठिदिबंधो असंखेजगुणो । १४०. वेदणीयस्स ठिदिवंधो असंखेज्जगुणो। १४१. एवं संखेज्जाणि ठिदिबंधसहस्साणि गदाणि । १४२. तदो अण्णो ठिदिबंधो एक्कसराहेण मोहणीयस्स ठिदिबंधो थोत्रो । १४३. तिण्हं घादिकम्माणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । १४४ णामा-गोदाणं ठिदिवंधो असंखेज्जगुणो। १४५. वेदणीयस्स ठिदिबंधो विसेसाहिओ ।
१४६. एदेणेव कमेण संखेन्जाणि ठिदिवंधसहस्साणि गदाणि । १४७. तदो ठिदिसंतकम्ममसण्णिठिदिवंधेण समगं जादं। १४८. तदो संखेज्जेसु ठिदिवंधसहस्सेसु गदेसु चउरिंदियठिदिवंधेण समगं जादं । १४९. एवं तीइदिय-बीइंदियठिदिवंधेण समगं जादं । १५०. तदो संखेज्जेसु ठिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु एइंदियठिदिवंधेण समगं ठिदिसंतकम्मं जादं । १५१. तदो संखेज्जेसु ठिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिसंतकम्मं जादं ।
१५२. ताधे चदुण्हं कम्माणं दिवड्डपलिदोवमद्विदिसंतकम्मं । १५३. मोहणीयस्स वि वेपलिदोवमहिदिसंतकम्मं । १५४. एदम्मि ठिदिखंडए उक्किण्णे णामा-गोदाणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागियं ठिदिसंतकम्मं । १५५. ताधे अप्पाबहुअं । सव्वत्थोवं स्थितिबन्ध सवसे कम हो जाता है । नाम और गोत्रका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है । तीन घातिया काँका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है । वेदनीयका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है । इस प्रकार संख्यात सहस्र स्थितिवन्ध व्यतीत होते हैं। तत्पश्चात् अन्य स्थितिवन्ध प्रारम्भ होता है। उस समय एक साथ मोहनीयका स्थितिवन्ध सबसे कम होता है। तीन घातिया कर्मोंका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है। नाम और गोत्र कर्मका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है। वेदनीयका स्थितिवन्ध विशेप अधिक होता है ॥१३७-१४५॥
चूर्णिसू०-इस ही क्रमसे संख्यात सहस्र स्थितिवन्ध व्यतीत होते हैं । तव सव कर्मोंका स्थितिसत्त्व असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवके स्थितिवन्धके समान हो जाता है। तत्पश्चात् संख्यात सहस्र स्थितिवन्धोके वीत जानेपर चतुरिन्द्रियके स्थितिवन्धके समान स्थितिसत्त्व हो जाता है । इसी प्रकार क्रमशः त्रीन्द्रिय और द्वीन्द्रियके स्थितिवन्धके सदृश स्थितिसत्त्व होता है । पुनः संख्यात सहस्र स्थितिकांडकोंके व्यतीत होनेपर एकेन्द्रियके स्थितिघन्धके सदृश स्थितिसत्त्व हो जाता है। तत्पश्चात् संख्यात सहस्र स्थितिकांडकोके व्यतीत होनेपर नाम और गोत्र कर्मका स्थितिसत्त्व पल्योपमप्रमाण हो जाता है ।।१४६-१५१॥
चूर्णिसू०-उस समय ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका स्थितिसत्त्व डेढ़ पल्योपम-प्रमाण है। मोहनीयका भी स्थितिसत्त्व दो पल्योपम-प्रमाण है। इस स्थितिकांडकके उत्कीर्ण होनेपर नाम और गोत्र कर्मका स्थितिसत्त्व पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण हो जाता है। उस समयमें अल्पवहुत्वं इस प्रकार है-नाम और गोत्रका स्थितिसत्त्व सबसे कम है । चार कर्मोका स्थिति