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गा० १२३ ] . चारित्रमोहक्षपक-विशेषक्रिया-निरूपण
७४९ णामा-गोदाणं ठिदिसंतकम्मं । १५६. चउण्हं कम्माणं ठिदिसंतकम्म तुल्लं संखेज्जगुणं । १५७ मोहणीयस्स ठिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । १५८. एदेण कमेण ठिदिखंडयपुधत्ते गदे तदो चदुण्हं कम्माणं पलिदोवमद्विदिसंतकम्मं । १५९. ताधे मोहणीयस्स पलिदोवमं तिभागुत्तरं ठिदिसंतकम्मं ।
१६०. तदो द्विदिखंडए पुण्णे चतुण्डं कम्माणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो द्विदिसंतकम्मं । १६१. ताधे अप्पाबहुअं। सव्वत्थोवं णामा-गोदाणं द्विदिसंतकम्मं । १६२. चदुहं कम्माणं द्विदिसंतकम्मं तुल्लं संखेज्जगुणं । १६३. मोहणीयस्स हिदिसंतकम्म संखेज्जगुणं । १६४. तदो द्विदिखंडयपुधत्तेण मोहणीयस्स विदिसंतकम्मं पलिदोवमं जादं।
१६५. तदो डिदिखंडए पुण्णे सत्तहं कम्माणं पलिदोवमस्स संखेन्जदिभागो द्विदिसंतकम्मं जादं । १६६. तदो संखेज्जेसु द्विदिखंडयसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो हिदिसतकम्मं जादं । १६७. ताधे अप्पाबहुअं । सव्वत्थोवं णामा-गोदाणं हिदिसंतकम्मं । १६८. चउण्हं कम्माणं हिदिसंतकम्मं तुल्लमसंखेज्जगुणं । १६९. मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । १७०. तदो द्विदिखंडयपुधत्तेण च उण्हं कम्माणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो हिदिसंतकम्म जादं । १७१. ताधे अप्पाबहुअं । णामा-गोदाणं ट्ठिदिसंतकम्मं थोवं । १७२. चउण्हं कम्माणं ट्ठिदिसत्त्व परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा है । मोहनीयका स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है । इस क्रमसे स्थितिकांडकपृथक्त्वके व्यतीत होनेपर चार कर्मो का स्थितिसत्त्व पल्योपमप्रमाण होता है। उसी समय मोहनीयका स्थितिसत्त्व विभागसे अधिक पल्योपमप्रमाण होता है।। १५२-१५९।।
चूर्णिसू०-तत्पश्चात् स्थितिकांडकके पूर्ण होनेपर चार कर्मोंका स्थितिसत्त्व पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है-नाम और गोत्रका स्थितिसत्त्व सबसे कम है। चार कर्मोंका स्थितिसत्त्व परस्पर समान और संख्यातगुणा है । मोहनीयका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है । तत्पश्चात् स्थितिकांडक-पृथक्त्वसे मोहनीयका स्थितिसत्त्व पल्योपमप्रमाण हो जाता है ॥१६०-१६४॥
चूर्णिसू०-तदनन्तर स्थितिकांडकके पूर्ण होनेपर सात फर्मोंका स्थितिसत्त्व पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण हो जाता है । पुनः संख्यात सहस्र स्थितिकांडकोंके व्यतीत होनेपर नाम
और गोत्रका स्थितिसत्त्व पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हो जाता है। उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है-नाम और गोत्रका स्थितिसत्त्व सबसे कम है । चार कर्मोंका स्थितिसत्त्व परस्पर समान । और असंख्यातगुणा है । मोहनीयका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है। पुनः स्थितिकांडकपृथक्त्वके पश्चात् चार कर्मों का स्थितिसत्त्व पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हो जाता है। उस समय अल्पवहुत्व इस प्रकार है-नाम और गोत्रका स्थितिसत्त्व सबसे कम है। चार कर्मोंका स्थितिसत्त्व परस्पर तुल्य और असंख्यातगुणा है ।