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गा० १२३ ]
चारित्रमोहक्षपक- विशेषक्रिया- निरूपण
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८८. जाधे णामा-गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगो वंधो ताधे अप्पाबहुअं वत्तसामो । ८९. तं जहा । ९०. णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । ९१. णाणावरणीयदंसणावरणीय वेदणीय - अंतराइयाणं ठिदिबंधो विसेसाहिओ । ९२. मोहणीयस्स बंधो विसेसाहिओ । ९३. अदिकता सच्चे हिदिबंधा एदेण अप्पाबहु अविहिणा गदा | ९४. तो णामा-गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगे बंधे पुण्णे जो अण्णो ठिदिबंधो, सो संखेजगुणहीण । ९५. सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो विसेसहीणो । ९६. ताचे अप्पाबहुअं । गामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । ९७. चदुण्हं कम्माणं ठिदिबंधो तुल्लो संखे गुणो । ९८. मोहणीयस्स ठिदिबंधो विसेसाहिओ । ९९. एदेण कमेण संखेजाणि ट्ठिदिबंधसहस्त्राणि गदाणि । १०० तदो णाणावरणीय दंसणावरणीय वेदणीय-अंतराइयाणं पलिदोषमडिदिगो बंधो जादो । १०१. ताधे मोहणीयस्स विभागुत्तरपलिदोमट्टिदिगो बंध जादो । १०२. तदो अण्णो ठिदिबंधो चदुण्हं कम्माणं संखेज्जगुणहीणं । १०३. ताधे अप्पाबहुअं । णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । १०४. चदुण्हं कम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । १०५. मोहणीयस्स ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । १०६. एदेण कमेण संखेज्जाणि ठिदिबंधसहस्साणि गदाणि ।
चूर्णिसू० - जिस समय नाम और गोत्रका पल्योपमकी स्थितिवाला वन्ध होता है, उस समयका अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इस प्रकार है- नाम और गोत्रका स्थितिबन्ध सबसे कम है । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तरायका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । मोहनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । अतिक्रान्त अर्थात् इससे पूर्व में वर्णित सभी स्थितिबन्ध इसी अल्पबहुत्वविधान से व्यतीत हु है ।। ८८-९३॥
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चूर्णिसू० - पुनः नाम और गोत्रका पल्योपमकी स्थितिवाला बन्ध पूर्ण होनेपर जो अन्य स्थितिबन्ध होता है, वह संख्यातगुणा हीन होता है । शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है । उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है- - नाम और गोत्रका स्थितिबन्ध सबसे कम है । ज्ञानावरगादि चार कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा है । मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इस क्रमसे संख्यात सहस्र स्थितिबन्ध व्यतीत होते हैं । तब ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मका स्थितिबन्ध पल्योपमप्रमाण होता है । उसी समय मोहनीयका त्रिभागसे अधिक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । तत्पश्चात् ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका जो अन्य स्थितिबन्ध है वह संख्यातगुणाहीन है । उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है- नाम और गोत्रका स्थितिबन्ध सबसे कम है । ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । मोहनीयका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इस क्रम संख्यात सहस्र स्थितिबन्ध व्यतीत होते हैं ।। ९४ - १०६॥
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'पलिदोवमट्ठिदिगो वंधो' ऐसा पाठ मुद्रित है । (देखो पृ० १९५७ ) ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'असंखेजगुणो' पाठ मुद्रित है । ( देखो पृ० १९५८ )
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