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गा०८]
अधिकार-गाथा-निरूपण चत्तारि य खवणाए एका पुण होदि खीणमोहस्स । एका संगहणीए अट्ठावीसं समासेण ॥८॥
गाथाएँ हैं । संक्रमणमें चार गाथाएँ प्रतिबद्ध हैं। अपवर्तनामें तीन गाथाएँ और कृष्टीकरणमें ग्यारह गाथाएँ निबद्ध हैं ॥७॥
विशेषार्थ- चारित्रमोहनीय कर्मके क्षयका प्रारम्भ करनेवाला जीव 'प्रस्थापक' कहलाता है । उसके विषयमे 'संकामयपट्टवयस्स परिणामो केरिसो हवे' इस गाथासे लेकर 'किंद्विदियाणि कम्माणि' इस गाथा तक चार गाथाएँ निबद्ध है। चारित्रमोहनीयके क्षपण करनेवाले जीवकी नवे गुणस्थानमे अन्तरकरणके पश्चात् 'संक्रामक' यह संज्ञा हो जाती है । उसके विषयमे 'संकामणपट्ठव०' इस गाथासे लेकर 'बंधो व संकमो वा उदयो वा' इस गाथा तक चार गाथाएँ निवद्ध हैं। चारित्रमोहकी स्थितिके ह्रास करनेको अपवर्तना कहते हैं । इसके विषयमें 'कि अंतरं करेतो' इस गाथासे लेकर 'हिदि अणुभागे अंसे' इस गाथा तक तीन गाथाएँ निबद्ध हैं। कषायोके खण्ड करनेको कृष्टीकरण कहते हैं। इसके विषयमें 'केवडिया किट्टीओ' इस गाथासे लेकर 'किट्टीकदम्मि कम्मे के वीचारा दु मोहणीयस्स' इस गाथा तक ग्यारह गाथाएं निबद्ध है।
कृष्टियोंकी क्षपणामें चार गाथाएँ निबद्ध हैं । क्षीणमोह-वीतराग-छद्मस्थके विषयमें एक गाथा है। संग्रहणीके विषयमें एक गाथा सम्बद्ध है । इस प्रकार सव मिलाकर चारित्रमोह-क्षपणा नामके पन्द्रहवें अर्थाधिकारमें अट्ठाईस गाथाएँ प्रतिबद्ध हैं ॥८॥
विशेषार्थ-चारो संज्वलन कपायोकी जो बारह कृष्टियाँ की जाती हैं उनके क्षपणाका प्रतिपादन करनेवाली 'किं वेदेतो किट्टि खवेदि' इस गाथासे लेकर 'किट्टीदो किट्टि पुण' इस गाथा तक चार गाथाएँ हैं। मोहकर्मकी समस्त प्रकृतियोके क्षीण हो जानेपर क्षीणमोह संज्ञा प्राप्त होती है। उसके विपयमे 'खीणेसु कसाएसु य सेसाणं' यह एक गाथा है। समस्त अधिकारके उपसंहार करनेवाली गाथाको संग्रहणी कहते हैं। ऐसी 'संकामणमोवट्टण०' यह एक गाथा है । इस प्रकार इन सब गाथाओका योग (४+४+३+ ११ +४+ १ + १ =२८ ) अट्ठाईस होता है । चारित्रमोहकी क्षपणा-सम्बन्धी इन अट्ठाईस गाथाओको पूर्वोक्त चौसठ गाथाओमे मिला देनेपर समस्त गाथाओका जोड़ (६४ + २८=९२) वानवै होता है।
चारित्रमोहक्षपणा नामके पन्द्रहवें अर्थाधिकारमें जो अट्ठाईस गाथाएँ वतलाई गई हैं', उनमे सूत्रगाथाएँ कितनी हैं और असूत्रगाथाएँ कितनी है, यह बतलानेके लिए आचार्य दो गाथासूत्र कहते हैं