________________
कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक-अर्थाधिकार एकवीसाए पयडीओ णियमा पविसंति । १९५. सेसाणि ठाणाणि भजियवाणि।
१९६. णाणाजीवेहि कालो अंतरं च अणुचिंतिऊण णेदव्यं ।
१९७. अप्पाबहुअं। १९८. चउण्हं सत्तण्हं दसण्हं पयडीणं पसगा तुल्ला थोवा । १९९. तिण्हं पवेसगा संखेज्जगुणा । २००. छण्हं पवेसगा विसेसाहिया । २०१. णवण्हं पवेसगा विसेसाहियाँ । २०२. वारसण्हं पवेसगा विसेसाहियाँ । २०३. एगूणवीसाए पवेसगा विसेसाहियाँ । २०४. वीसाए पवेसगा विसेसाहिया। अपेक्षा ये प्रवेशस्थान सर्वकाल पाये जाते हैं। ) शेप प्रवेशस्थान भजनीय है । अर्थात् उनके प्रवेश करनेवाले जीव कभी पाये जाते है और कभी नहीं पाये जाते है ।।१९३-१९५॥
चूर्णिसू०-इसी प्रकार नाना जीवोकी अपेक्षा काल और अन्तरको आगमानुसार चिन्तवन करके जानना चाहिए ॥१९६।।
चूर्णिसू०-अब उक्त प्रवेश-स्थानोका अल्पवहुत्व कहते है चार, सात, और दश प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव परस्परमे वरावर हैं, किन्तु वक्ष्यमाण स्थानोकी अपेक्षा सबसे कम है । तीन प्रकृतियोंके प्रवेश करनेवाले जीव उपर्युक्त प्रवेश-स्थानोसे संख्यातगुणित हैं । तीन प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवोसे छह प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव विशेप अधिक है । छह प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवोसे नी प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव विशेष अधिक हैं। नौ प्रकृतियोके प्रवेशक जीवोसे बारह प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव विशेष अधिक हैं । बारह प्रकृतियों के प्रवेशक जीवोसे उन्नीस प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव विशेष अधिक है। उन्नीस प्रकृतियोके प्रवेशक जीवोसे बीस प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव विशेष अधिक है ॥१९७-२०४॥
१ कुदो; णाणाजीवावेक्खाए एदेसि पवेसट्टाणाण धुवभावेण सव्वकालमवट्ठाणदसणादो । जयध० २ कुदो; पणुवीसादिसेसपवेसट्ठाणाणम वभावदसणादो । जयध० ।
३ कुदो एयसमयसचिदत्तादो । त जहा-तिण्ह लोभाणमुवरि मायासंजलणे पवेसिदे एयसमयं चदुण्ह पवेसगो होइ । तिण्ह मायाणमुवरि माणसजलण पवेसिय एगसमय सत्तण्ह पवेसगो होद । तिण्ह माणाणमुवरि कोहसजलण पवेसयमाणो एयसमयं चेव दसण्हं पवेसगोहोदि त्ति एदेण कारणेण एदेसिं तिण्ह पि पवेसट्टाणाण सामिणो जीवा अण्णोण्णेण सरिसा होदूण उवरि भणिस्समाणसेसपदेहितो थोवा जादा । जयध०
४ किं कारण; सव्यकालबहुत्तादो। त जहा-तिविह लोभमोकड्डिऊग ट्ठिदसुहुमसापराइयकाले पुणो अणियटिअद्धाए सखेज्जे भागे च सचिदो जीवरासी तिण्ह पवेसगो होइ । तेण पुविल्लादो एगसमयसचयादो एसो अतोमुहुत्तसचओ सखेज्जगुणो त्ति णस्थि सदेहो । जयध०
५ केण कारणेण, विसेसाहियकालभतरसचिदत्तादो । जयध० । ६ कुदो; मायावेदगकालादो विसेसाहियमाणवेदगकालम्मि सचिदजीवरासिस्स गहणादो । जयध०
७ किं कारण; पुबिल्लसचयकालादो विसेसाहियकोहवेढगकालम्मि अवगदवेटपडिबद्धम्मि सचिद. जीवरासिस्स गहणादो । जवध०
८ किं कारण; पुरिसवेद-छण्णोकसाए ओकड्डिय पुणो जाव इस्थिवेदं ण ओकड्ड दि, ताव एदम्मि काले पुविल्लसचयकालादो विसेसाहिवम्मि सचिदजीवरा सित्स विवक्खियत्तादो । जयध०
९ कुदो इत्थिवेदमोकड्डिय पुणो जाव णवुसयवेद ण ओक्दि ताव एदम्मि फाले पुबिल्लसचयकालादो विसेसाहियम्मि सचिदजीवाणमिहग्गहणादो ! जयध०