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गा० ७६ ]
अनुभाग- प्रदेशापेक्षया चतुःस्थान अल्पबहुत्व निरूपण
(२२) माणे लदासमाणे उकस्सा वग्गणा जहण्णादो । हीणा च पदेसग्गे गुणेण णियमा अनंतेण ॥ ७५ ॥ (२३) नियमा लदासमादो दारुसमाणो अनंतगुणहीणो । सेसा कमेण हीणा गुणेण णियमा अनंतेण ॥ ७६ ॥
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संभव नहीं है, क्योंकि कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिमे भी एक- स्थानीय अनुभाग पाया जाता है। और जघन्य स्थिति में भी चतुःस्थानीय अनुभाग पाया जाता है । गुणधराचार्यने आगे अनुभाग और प्रदेशकी अपेक्षासे ही सोलहस्थानोका अल्पबहुत्व कहा है, स्थितिकी अपेक्षा नही, इससे उक्त अर्थ फलित होता है ।
लता-समान मानमें उत्कृष्ट वर्गणा अर्थात् अन्तिम स्पर्धक अन्तिम वर्गणा, जघन्य वर्गणासे अर्थात् प्रथम स्पर्धककी पहली वर्गणासे प्रदेशों की अपेक्षा नियमसे अनन्तगुणी हीन है | ( किन्तु अनुभागकी अपेक्षा जघन्य वर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणा निश्चयसे अनन्तगुणी अधिक जानना चाहिए | ) ॥ ७५ ॥
विशेषार्थ - इस गाथा के द्वारा स्वस्थान- अल्पबहुत्वकी सूचना की गई है । इसलिए जिस प्रकार लतास्थानीय मानकी उत्कृष्ट और जघन्य वर्गणाओमें अनुभाग और प्रदेशकी अपेक्षा अल्पबहुत्व बतलाया गया है, उसी प्रकारसे शेप पन्द्रह स्थानो में भी लगा लेना चाहिए । अब मानकपायके चारो स्थानोका परस्थान - सम्बन्धी अल्पबहुत्व कहनेके लिए उत्तर गाथासूत्र कहते हैं—
लतासमान मानसे दारुसमान मान प्रदेशों की अपेक्षा नियमसे अनन्तगुणित हीन है । इसी क्रमसे शेष अर्थात् दारुसमान मानसे अस्थिसमान मान और अस्थिसमान मानसे शैलसमान मान नियमसे अनन्तगुणित हीन है || ७६ ॥
विशेषार्थ - 'लतासमान मानसे दारु - समान मान अनन्तगुणित हीन हैं' इसका अभिप्राय यह है कि लतास्थानीय मानके सर्व प्रदेश पिंडसे दारुस्थानीय मानका सर्व प्रदेशपिंड अनन्तगुणा हीन होता है । इसका कारण यह है कि लतासमान मानकी जघन्य वर्गणासे दारुसमान मानकी जघन्य वर्गणा प्रदेशोकी अपेक्षा अनन्तगुणी हीन होती है। इसी प्रकार लतास्थानीय मानकी दूसरी वर्गणासे दारुस्थानीय मानकी दूसरी वर्गणा भी अनन्तगुणी हीन होती है । इसी क्रमसे आगे जाकर लतास्थानीय मानकी उत्कृष्ट वर्गणासे दारुस्थानीय मानकी उत्कृष्ट वर्गणा भी अनन्तगुणी हीन होती है, अतएव लतासमान मानके सर्व प्रदेश पिडसे दारुसमान मानका सर्व प्रदेश - पिंड अनन्तगुणित हीन स्वतः सिद्ध हो जाता है । इसी प्रकार दारुसमान मानके सर्व प्रदेश - पिंडसे अस्थिसमान मानका सर्व प्रदेशपिंड और अस्थिसमान मानसे शैलसमान मानका सर्व प्रदेशपिंड अनन्तगुणित हीन जानना चाहिए ।
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