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कसाय पाहुड सुत्त [१४ चारित्रमोह-उपशामनाधिकार अण्णो हिदिबंधो एकसराहेण णामा-गोदाणं द्विदिवंधो थोवो । ५११. चदुण्डं कम्माणं हिदिवंधो तुल्लो विसेसाहिओ । ५१२. मोहणीयस्स द्विदिवंधो विसेसाहिओ । ५१३. जत्तो पाए असंखेज्जवस्सद्विदिबंधो, तत्तो पाए पुण्णे पुण्णे द्विदिवंधे अण्णं हिदिवंधमसंखेज्जगुणं बंधइ । ५१४. एदेण कमेण सत्तण्हं पि कम्माणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागियादो द्विदिवंधादो एक्कसराहेण सत्तण्हं पि कम्माणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिओ द्विदिबंधो जादो* । ५१५. एत्तो पाए पुण्णे पुण्णे द्विदिवंधे अण्णं द्विदिबंधं संखेज्जगुणं बंधइ।
५१६. एवं संखेज्जाणं द्विदिवंधसहस्साणमपुव्या बड्डी पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो । ५१७. तदोमोहणीयस्स जाधे अण्णस्स द्विदिवंधस्स अपुव्वा वड्डी पलिदोवमस्स संखेज्जा भागा । ५१८. ताधे चदुण्हं कम्माणं हिदिवंधस्स वड्डी पलिदोवमं चदुभागेण सादिरेगेण ऊणयं । ५१९. ताधे चेव णामा-गोदाणं ठिदिवंधपरिवड्डी अद्धपलिदोवमं संखेज्जदिभागूणं । ५२०. जाधे एसा परिवड्डी ताधे मोहणीयस्स जट्ठिदिगो बंधो पलिदोवमं । ५२१. चदुण्ह करमाणं जट्ठिदिगो बंधो पलिदोवमं चदुण्डं भागूणं । ५२२. णामा-गोदाणं जहिदिगो बंधो अद्धपलिदोवमं । ५२३. एत्तो पाए द्विदिबंधे पुण्णे पुण्णे सबसे कम होता है। इससे चार कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य और विशेष अधिक होता है । इससे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है । जिस स्थलसे असंख्यात वर्षकी स्थितिवाला बन्ध होता है, उस स्थलसे प्रत्येक स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर असंख्यात. गुणित अन्य स्थितिबन्धको बॉधता है । इस क्रमसे सातो ही कर्मोंकी प्रकृतियोका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमित स्थितिबन्धसे एक साथ सातो ही कर्मों का पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिवन्ध होने लगता है। इस स्थलसे लेकर आगे प्रत्येक स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर अन्य संख्यातगुणित स्थितिबन्धको बाँधता है ॥५०५-५१५॥
चूर्णिसू०-इस प्रकार संख्यात सहस्र स्थितिबन्धोंकी अपूर्व वृद्धि पल्योपमके संख्यातवे भागमात्र होती है। तत्पश्चात् जिस समय मोहनीयकर्मके अन्य स्थितिवन्धकी अपूर्व वृद्धि पल्योपमके संख्यात वहुभाग-प्रमाण होती है, उस समय चार कर्मो के स्थितिबन्धकी वृद्धि सातिरेक चतुर्थ भागसे हीन पल्योपमप्रमाण होती है। उसी समयमै नाम और गोत्रकर्मके स्थितिवन्धकी परिवृद्धि संख्यातवें भागसे हीन अर्धपल्योपम होती है । जिस समय यह वृद्धि होती है, उस समय मोहनीयका यत्स्थितिकवन्ध पल्योपमप्रमाण है । चार कर्मों का यत्स्थितिकवन्ध चतुर्थभागसे हीन पल्योपमप्रमाण है । नाम और गोत्रका यत्स्थितिकवन्ध अर्धपल्योपमप्रमाण है। इस स्थलसे प्रत्येक स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर तब तक
__* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें इस सूत्रके 'पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागियादो द्विदिवंधादो एकसराहेण सत्तण्हं पि कम्माणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिओ हिदिवधो जादो' इतने अशको टीकामें सम्मिलित कर दिया है। तथा 'कम्माण के स्थानपर 'कम्मपयडीणं' पाठ मुद्रित है ।
(देखो पृ० १९१०)