Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 849
________________ गा० १२३ ] चारित्रमोहक्षपणा-प्रस्थापक-स्वरूप-निरूपण - ३८. परमसमयअपुचकरणं पविटेण हिदिखंडयमागाइदं । ३९. अणुभागखंडयं च आगाइदं । ४०. तं पुण अप्पसत्थाणं कम्माणमणंता भागा । ४१. कसायक्खवगस्स अपुचकरणे पडमट्टि दिखंडयस्स पमाणाणुगमं वत्तइस्सामो । ४२. तं जहा । ४३. अपुग्धकरणे परमविदिखंडयं जहण्णयं थोवं । ४४. उक्कस्सयं संखेज्जगुणं । ४५. उकस्सयं पि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो। ४६. जहा दंसणमोहणीयस्स उवसामणाए च दंसणमोहणीयस्स खवणाए च कसायाणमुवसामणाए च एदेसि तिहमावासयाणं जाणि अपुव्वकरणाणि तेसु अपुव्वकरणेसु पडमट्टिदिखंडयं जहण्णयं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो, उक्कस्सयं सागरोवमपुधत्तं । एत्थ पुण कसायाणं खवणाए जं अपुचकरणं तम्हि अपुचकरणे पडमद्विदिखंडयं जहण्णयं पि उक्कस्सयं पि पलिदोवमस्स संखेन्जदिभागो।। ४७ दो कसायक्खवगा अपुवकरणं समगं पविट्ठा । एकस्स पुण द्विदिसंतकम्म संखेज्जगुणं, एक्कस्स डिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं । जस्स संखेज्जगुणहीणं ट्ठिदिसंतकम्म, तस्स द्विदिखंडयादो परमादो संखेज्जगुणहिदिसंतकम्मियस्स द्विदिखंडयं पढम संखेज्जगुणं । विदियादो विदियं संखेज्जगुणं । एवं तदियादो तदियं । एदेण कमेण सव्वम्हि चूर्णिसू०-अपूर्वकरणके प्रथम समयमे प्रवेश करनेवाले क्षपकके द्वारा स्थितिकांडक घात करने के लिए ग्रहण किया गया और अनुभागकांडक भी घात करनेके लिए ग्रहण किया गया । यह अनुभागकांडक अप्रशस्त कर्मों के अनन्त बहुभागप्रमाण है। कपायोंका क्षपण करनेवाले जीवके अपूर्वकरण गुणस्थानमें प्रथम स्थितिकांडकके प्रमाणानुगमको कहते हैं। वह इस प्रकार है-अपूर्वकरणमे जघन्य प्रथम स्थितिकांडक सबसे कम है। उत्कृष्ट स्थितिकांडक संख्यातगुणा है । वह उत्कृष्ट भी पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण है ।। ३८-४५॥ चूर्णिम०-जिस प्रकार दर्शनमोहनीयकी उपशामनामे, दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें और कषायोकी उपशामनामें इन तीनो आवश्यकोके जो अपूर्वकरण-काल है, उन अपूर्वकरणोमें जघन्य प्रथम स्थितिकांडक पल्योपमके संख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट सागरोपम-पृथक्त्वप्रमाण है, उस प्रकार यहाँ नहीं है। किन्तु यहॉपर कपायोकी क्षपणामे जो अपूर्वकरण-काल है, उस अपूर्वकरणमें जघन्य और उत्कृष्ट दोनो ही प्रथम स्थितिकांडक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥४६॥ चूर्णिसू०-कपायोका क्षपण करनेके लिए समुद्यत दो क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थानमे एक साथ प्रविष्ट हुए। इनमेसे एकका तो स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है और एकका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित हीन है। जिसका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा हीन है, उसके प्रथम स्थितिकांडकसे संख्यातगुणित स्थितिसत्त्ववाले आपकका प्रथम स्थितिकांडक संख्यातगुणा है। इसी प्रकार प्रथमके दूसरे स्थितिकांडकसे द्वितीयका दूसरा स्थितिकांडक संख्यातगुणा है । इसी प्रकार तीसरेसे तीसरा स्थितिकांडक संख्यातगुणा है। इस क्रमसे अपूर्वकरणके

Loading...

Page Navigation
1 ... 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043