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गुणसे डिणिक्खेवविधि च इदरकम्पगुण से डिणिक्खेवेण सरिसं काहिदि ।
५८४. लोभेण उवदिस्स उवसामगस्स गाणत्तं वत्तस्सायो । ५८५. तं जहा । ५८६. अंतरकदमेत्ते लोभस्स पढमडिदि करेदि । जदेही कोहेण उवदिस्त कोहस्स पढमट्ठिदी, माणस्स च परमट्ठिदी, मायाए च पढमडिदी, लोभस्स च सांपराइयपढमहिदी, तद्देही लोभस्स पडमट्टिदी । ५८७. सुमसांपराइयं पडिवण्णस्स णत्थि णाणतं । ५८८. तस्सेच पडिवदमाणगस्स हुमसां पराइयं वेदेंतस्स णत्थि णाणत्तं ।
कसाय पाहुड सुप्त [ १४ चारित्र मोह - उपशामनाधिकार
५८९. पढमसमयवादरसांपराइयप्पहुडि णाणत्तं वत्तस्साम । ५९० तं जहा । ५९१. तिविहस्स लोभस्स गुणसेढिणिक्खेवो इदरेहिं कस्मेहिं सरिसो। ५९२. लोभ वेदेमाणो से सेकसा ओकड्डिहिदि । ५९३. गुणसेढिणिक्खेवो इदरेहिं कम्मेहिं गुणसेटिणिक्खेवेण सम्बेसि कम्माणं सरिसो, सेसे सेसे च णिक्खिवदि । ५९४. एदाणि णाणत्ताणि जो कोहेण उवसामेदुमुबट्ठादि तेण सह सण्णिकासिज्जमाणाणि । ५९५. ए. पुरिसवेण उवदिस्स वियप्पा ।
वेदन करनेवाला शेष कपायोका अपकर्पण करता है और वहॉपर गुणश्रेणी- निक्षेपको भी इतर कर्मों के गुणश्रेणी - निक्षेपके सदृश करेगा || ५७६-५८३॥
चूर्णिसू० - लोभकषायके साथ श्र ेणी चढ़नेवाले उपशामककी विभिन्नता कहते है । वह इस प्रकार है - अन्तरकरण करनेके प्रथम समयमे लोभकी प्रथमस्थितिको करता है । क्रोधके साथ श्रेणी चढ़नेवाले जीवके जितनी क्रोधकी प्रथमस्थिति है, जितनी मानकी प्रथम - स्थिति है, जितनी मायाकी प्रयमस्थिति है और जितनी वादरसाम्पराकिलोभकी प्रथम स्थिति है, उतनी सब मिलाकर लोभकी प्रथमस्थिति होती है । पुनः सूक्ष्मसाम्परायिकलोभको प्राप्त होनेवाले जीवके कोई विभिन्नता नहीं है । उसीके नीचे गिरते समय सूक्ष्मसाम्परायका वेदन करते हुए कोई विभिन्नता नही है ।। ५८४-५८८।।
चूर्णिसू०10- अव प्रथमसमयवर्ती वादरसाम्परायिकसंयतसे लेकर आगे जो विभिन्नता है उसे कहते हैं । वह इस प्रकार है - तीन प्रकारके लोभका गुणश्रेणीनिक्षेप इतर कर्मो के सदृश है । लोभका वेदन करते हुए शेष कपायोका अपकर्षण करता है । सब कर्मोंका गुणश्र ेणीनिक्षेप इतर कर्मों के गुणश्रेणीनिक्षेपके सदृश है । शेष शेषमे निक्षेपण करता है । क्रोधकषायके उदयके साथ जो कपायोके उपशमन करनेके लिए संमुद्यत हुआ है, उसके ये उपर्युक्त विभिन्नताएँ होती हैं । अतः उसके साथ सन्निकर्प करके इन विभिन्नताओको जानना चाहिए । ( यहाॅ इतना विशेष ज्ञातव्य है कि जो जीव जिस कषायके उदयके साथ श्रेणी चढ़ता है, वह उसी कपायके अपकर्पण करनेपर अन्तरको पूर्ण करता है । ) ये पुरुपवेदके साथ श्रेणी चढ़नेवाले पुरुष के विभिन्नता - सम्बन्धी विकल्प जानना चाहिए ॥ ५८९-५९५ ॥
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'जद्देही कोहेण उवदिस्स' इसे आदि लेकर आगे के समस्त सूत्राशको टीकामे सम्मिलित कर दिया गया है । ( देखो पृ० १९२२-२३ )
ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'जो कोहेण उवसामेदुमुट्ठादि तेण सह सण्णिकासिजमाणाणि ' इतने सूत्राको टीकामें सम्मिलित कर दिया गया है । ( देखो पृ० १९२४ )