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गा० १२३] पतमान-उपशामक-विशेषक्रिया-निरूपण उवट्ठियूण तदो पडिवदिदूण लोभं वेदेंतस्स णत्थि णाणत्तं । ५७१. मायं वेदेंतस्स णत्थि णाणत्तं । ५७२. माणं वेदयमाणस्स ताव णाणत्तं-जाव कोहो ण ओकड्डिज्जदि, कोहे ओकड्डिदे कोधस्स उदयादिगुणसेही पत्थि, माणो चेव वेदिज्जदि* । ५७३. एदाणि दोण्णि णाणत्ताणि कोधादो ओकड्डिदादो पाए जाव अधापयत्तसंजदो जादो त्ति ।
५७४. मायाए उवढिदस्स उवसामगस्स केद्देही मायाए पहमद्विदी ? ५७५. जाओ कोहेण उवद्विदस्स कोधस्स च चहमाणस्स च मायाए च पड़महिदीओ ताओ तिण्णि पहमद्विदीओ सपिंडिदाओ मायाए उवद्विदस्स यायाए पडमहिदी । ५७६. तदो मायं वेदेंतो कोहं च माणं च मायं च उवसामेदि । ५७७ तदो लोभमुवसागेतस्स णत्थि णाणत्तं । ५७८. मायाए उवहिदो उवसामेयूण पुणो पडिवदमाणगरस लोभ वेदयमाणस्स णत्थि णाणत्तं । ५७९. मायं वेदेंतस्स णाणत्तं । ५८०. तं जहा । ५८१. तिविहाए मायाए तिविहस्स लोहस्स च गुणसेडिणिक्खेवो इदरेहिं कस्मेहिं सरिसो, सेसे सेसे च णिक्खेयो। ५८२. सेसे च कसाए मायं वेदेंतो ओकड्डिहिदि । ५८३. तत्थ वहाँसे गिरकर लोभकपायका वेदन करनेवाले जीवके भी कोई विभिन्नता नही है । मायाको वेदन करनेवालेके भी विभिन्नता नही है । मानको वेदन करनेवालेके तब तक विभिन्नता है-जब तक क्रोधका अपकर्षण नही करता है। क्रोधके अपकर्षण करनेपर क्रोधकी उदयादि गुणश्रेणी नही होती है । वह मानको ही वेदन करता है। क्रोधक अपकर्षणसे लगाकर जब तक अधःप्रवृत्तसंयत होता है तब तक ये दो विभिन्नताएँ होती हैं ॥५६४-५७३॥
शंका-मायाकषायके साथ उपशमश्रेणी चढ़नेवाले उपशामकके मायाकी प्रथमस्थिति कितनी होती है ? ॥५७४॥
समाधान-क्रोधकपायके साथ उपशमश्रेणी चढ़नेवाले जीवके क्रोध, मान और मायाकी जितनी प्रथमस्थितियाँ है, वे तीनों प्रथमस्थितियाँ यदि सम्मिलित कर दी जाये, तो उतनी मायाकषायके साथ उपशमश्रेणी चढ़नेवाले जीवके मायाकपायकी प्रथमस्थिति होती है । अतएव मायाका वेदन करनेवाला क्रोध, मान और मायाको एक साथ उपशमाता है ॥५७५॥
चूर्णिसू०-तत्पश्चात् लोभका उपशमन करनेवाले जीवके कोई विभिन्नता नही है । मायाकषायके साथ चढ़ा हुआ और कषायोका उपशम करके पुनः गिरता हुआ लोभकपायका वेदन करनेवाला जो जीव है, उसके कोई विभिन्नता नही है। तत्पश्चात् मायाका वेदन करनेवालेके विभिन्नता होती है जो कि इस प्रकार है-तीन प्रकारकी माया और तीन प्रकारके लोभका गुणश्रेणी-निक्षेप इतर कर्मोंके सहश है और शेष शेषमे निक्षेप होता है । मायाका
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'कोहे ओकडिदे कोधस्स उदयादि गुणसेढी णत्थि, माणो चेव वेदिज्जदि' इतने सूत्राशको टीकामे सम्मिलित कर दिया है । ( देखो पृ० १९२१)
। ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'अंतरकोत्ते चेव मायाए पढमहिदिमेसो हवेदि' इतना टीकाश भी सूत्ररूपसे मुद्रित है । ( देखो पृ० १९२१)