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मा० १२३ ].
पतमान- उपशामक - विशेषक्रिया निरूपण
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पलिदोवमस्त संखेज्जदिभागेण वढह जत्तिया अणियट्टिअद्धा सेसा, अपुव्वकरणद्धा सव्वा च तत्तियं । ५२४. एदेण कमेण पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागपरिवडीए ट्ठिदिबंधसहसेसु गदेसु अण्णो एइंदियट्ठिदिबंध समगो द्विदिबंधो जादो। ५२५. एवं बीई दियती ' दिय- चउरिंदि - असण्णिट्ठिदिबंधसमगो द्विदिबंधो। ५२६ तदो द्विदिबंध सहस्सेसु गदेसु चरिमसमयअणियट्टी जादो । ५२७. चरिमसमयअणियट्टिस्स द्विदिबंधी सागरोवमसदसहस्त्रपुधत्तमं तो कोडीए ।
५२८. से काले अपुव्वकरणं पट्टि । ५२९. ताधे चेव अप्पसत्थ-उवसामणाकरणं णित्तीकरणं णिकाचणाकरणं च उग्वादिदाणि । ५३० ताधे चेव मोहणीयस्स वविधगो जादो । ५३१ ताधे चेव इस्स- रदि-अरदि - सोगाणमेकदरस्स संघादयस्त उदीरगो, सिया भय- दुगुंछाणमुदीरगो । ५३२. तदो अपुव्यकरणद्वाए संखेज्जदिभागे गदे तदो परभवियणामाणं बंधगो जादो । ५३३. तदो डिदिबंधसहस्सेहिं गदेहिं अपुव्यकरणद्धार संखेज्जेसु भागेसु गदेसु णिद्दा- पयलाओ बंध | ५३४. तदो संखेज्जेसु ट्ठिदिबंधसहस्से गदेसु चरिमसमयअपुव्यकरणं पत्तो ।
पल्योपमके संख्यातवे भागसे अधिक वृद्धि होती है जब तक कि जितना अनिवृत्तिकरणका काल शेष है और सर्व अपूर्वकरणका काल है । इस क्रमसे पल्योपम के संख्यातवे भागप्रमाण वृद्धि के साथ सहस्रो स्थितिबन्धोके बीत जानेपर अन्य स्थितिबन्ध एकेन्द्रिय जीवोंके स्थिति - बन्धके समान हो जाता है । इस प्रकार क्रमशः स्थितिबन्ध सहस्रो व्यतीत होनेपर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञीपंचेन्द्रियके स्थितिबन्धके समान स्थितिबन्ध हो जाता है । तत्पश्चात् स्थितिबन्ध - सहस्रो के बीतने पर यह चरमसमयवर्ती अनिवृत्तिकरणसंत होता है । चरमसमयवर्ती अनिवृत्तिकरणसंयतके स्थितिबन्ध अन्तःकोटी सागरोपम अर्थात् लक्षपृथक्त्व सागरप्रमाण होता है ।। ५१६-५२७॥
चूर्णिसू० - उसके अनन्तर समयमे वह अपूर्वकरण गुणस्थानमे प्रविष्ट होता है । उसी समय ही अप्रशस्तोपशामनाकरण, निधत्तिकरण, और निकाचनाकरण प्रगट हो जा है । उसी समयमे नौ प्रकारके मोहनीयकर्मका बन्धक होता है । उसी समय हास्य- रति और अरति-शोक, इन दोनोमेसे किसी एक युगलका उदीरक होता है । भय और जुगुप्सा युगलका उदीरक होता भी है और नही भी होता है । तत्पश्चात् अपूर्वकरणके कालका संख्यातवाँ भाग व्यतीत होनेपर तब वह परभव-सम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोका वन्धक होता है । तत्पश्चात् स्थितिबन्ध-सहस्रोके व्यतीत होनेपर और अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभागोके व्यतीत होनेपर निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियोंको बाँधता है । तत्पश्चात् संख्यात् सहस्र स्थितिवन्धोके व्यतीत होनेपर अपूर्वकरणके अन्तिम समयको प्राप्त होता है ।। ५२८ ५३४॥
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'जत्तिया अणियट्टिअद्धा सेसा अपुव्वकरणडा सव्वा च तत्तियं' इतने सूत्राको टीकामें सम्मिलित कर दिया है । ( देखो पृ० १९१२ )
+ ताम्रपत्रवाली प्रतिमें '- मंतोकोडीए' के स्थानपर 'मंतोकोडा कोडिीए' पाठ मुद्रित है । ( देखो पृ० १९४२)