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कसाय पाहुड सुप्त [ १४ चारित्रमोह-उपशमनाधिकार णाणि । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । २०२. पढमसमयअवेदो तिविहं कोहमुवसामेह । २०३ सा चेत्र पोराणिया पढमहिदी हवदि । २०४. द्विदिबंधे पुणे पुण्णे संजलणाणं ठिदिबंधो विसेसहीणो । २०५. सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो संखज्जगुणहीणो । २०६. एदेण कमेण जाधे आवलि-पडिआवलियाओ सेमाओ कोहसंजणस्स ताथे विदियट्ठिदीदो पढमट्टिदीदो आगाल-पडिआगालो वांच्छिण्णो । २०७. पडिआवलियादो चेत्र उदीरणा कोहसंजलणस्स । २०८. पडिआचलियाए एक्कम्हि समए सेसे कोहसं जलणस्स जहणिया ठिदि - उदीरणा । २०९. चदुण्हं संजलगाणं ठिदिबंधो चत्तारि मामा । २१०. सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्नाणि वस्ससहस्सा णि । २११. पडिआवलिया उदयावलियं पविसमाणा पविट्ठा' । २१२. ता चैत्र कोहसं जलणे दो आवलियबंधे दुसमपूणे मोत्तूण सेसा तिविहकोधपदेसा उवसामिजमाणा उवसंता । २१३. कोहसंजलणे दुविहो कोहा ताव सछुहदि जात्र कोहसंजलणस्स अन्तर्मुहूर्त क्रम बत्तीस वर्ष है। शेप कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात सहस्र वर्ष है । प्रथमसमयवर्ती अपगतवेदी जीव प्रत्याख्यानावरण, अप्रत्याख्यानावरण और संज्वलनरूप तीन प्रकार क्रोधको उपशमाता है, अर्थात् यहॉपर तीनो क्रोधोंका उपशमन प्रारंभ करता है । वही पुरानी प्रथमस्थिति होती हैं, अर्थात् अन्तर प्रारम्भ करते हुए जो पहले क्रोधसंज्वलनकी प्रथमस्थिति थी, वही यहाँ पर अवस्थित रहती है, कोई अपूर्व स्थिति यहाॅ की जाती है । प्रत्येक स्थितिबन्धके पूर्ण होने पर संज्वलन - चतुष्कका अन्य स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है और शेप कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणित हीन होता है । इस क्रमसे जब संज्वलनक्रोधकी आवली और प्रत्यावली ही शेष रहती है, तव द्वितीयस्थिति और प्रथमस्थितिसे आगाल - प्रत्यागाल व्युच्छिन्न हो जाते हैं । उस समय प्रत्यावलीसे अर्थात् उदयावली से बाहिरी दूसरी आवलीसे ही संज्वलनक्रोधकी उदीरणा होती है । प्रत्यावली में एक समय शेष रहने पर संज्वलनक्रोधकी जघन्य स्थिति - उदीरणा होती है। इस समय चारो संज्वलनकपायोका स्थितिबन्ध चार मास है । तथा शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात सहस्र वर्ष है । इस समय प्रत्यावली उदयावली मे प्रवेश करती हुई प्रविष्ट हो चुकी । अर्थात् क्रोधसंज्वलनकी प्रथमस्थिति उदयावलीमात्र अवशिष्ट रह जाती है । इसे ही उच्छिष्टावली कहते हैं । उसी समय ही दो समय कम दो आवलीमात्र संज्वलनक्रोध के समयप्रबद्धों को छोड़कर प्रतिसमय असंख्यातगुणित श्रेणीके द्वारा उपशान्त किये जानेवाले तीन प्रकारके क्रोध-प्रदेशाम प्रशस्तोपशामनासे उपशान्त होते हैं । संज्वलनक्रोध में प्रत्याख्यानावरण और अप्रत्याख्यानावरणरूप दो प्रकारके क्रोधको तब तक संक्रमण करता है, जब तक कि संज्वलनको प्रथमस्थितिमे तीन आवलिया अवशिष्ट रहती हैं । एक समय कम तीन
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१ णवार पडिआवलियाए उदयावलिय पविडाए आवलियमेत्ती च कोहस जलणस्स पढमट्ठिदी परिसिट्ठा 1 एसा च उच्छिट्ठावलिया णाम । जयध०