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कसाय पाहुड सुत [ १४ चारित्रमोह-उपशामनाधिकार मेत्ता लोहसंजणस्स समयपवद्धा अणुवसंता किट्टीओ सव्वाओं चेव अणुवसंताओ । तन्वदिरित्तं लोहसंजलणस्स पदेसग्गं उवसंतं दुविहो लोहो सन्चो चैत्र उचसंतो वक्रबंधुच्छिडाबलियवज्जं २७० एसो चेव चरिमसमयवादरसां पराइयो ।
२७१. से काले
समयमांपराइयो जादो । २७२. तेण पढमसमय'सुमसां पराइएण अण्णा पठमट्टिदी कढ़ा । २७३. जा पढमसमयलोभवेदास्स पढमट्ठिदी तिस्से पर दिए इमा सुमसां पराइयस्स पढमट्टिदी दुभागो श्रोतॄणओ || २७४. पढमसमय सुमसां पराइयो किट्टीणमसंखेज्जे भागे वेद्यदि । २७५ जाओ अपनमअचरिमेसु समएतु अपुन्नाओ किडीओ बहाओ ताओ सव्वाओ पढमसमए उदिण्णाओं । २७६. जाओ परमसमए कदाओ किट्टीओ तासिमग्गग्गादो असंखेज्जदिभागं मोत्तृण । २७७. जाओ चरिमसमए कदाओ किड्डीओ तासि च जण किट्टीप्पहूडि असंखेज्जदिभागं मोत्तूण सेसाओ सव्वाओं किड्डीओ उदिष्णाओ । २७८. ताधे चेत्र सच्चामु किड्डी पदेसग्गमुवसामेदि गुणसेटीए ।
हैं, एतावन्मात्र संज्वलनलोभ के समयबद्ध अनुपशान्त रहते हैं और कृष्टियाँ सर्वही अनुपशान्त रहती हैं । इनके अतिरिक्त नवकबद्ध और उच्छिष्टावलीको छोड़कर संज्वलन - लोका सर्व प्रदेश उपशान्त हो जाता है । प्रत्याख्यानावरणीय और अप्रत्याख्यानावरणीय दोनों प्रकारका सर्व लोभ उपशान्त हो जाता है । यह ही अन्तिमसमयवर्ती वादर साम्परायिक संयत है || २६७-२७०॥
चूर्णिसू० - इसके पश्चात् अनन्तर समय में वह प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक संयत हो जाता है । उस प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत के द्वारा अन्य प्रथमस्थिति की जाती है । प्रथमसमयवर्ती लोभवेदकके जो समस्त लोभ वेदककालके दो त्रिभागसे कुछ अधिक प्रमाणवाली प्रथमस्थिति थी, उस प्रथमस्थितिके कुछ कम दो भाग प्रमाण यह प्रथम स्थिति सूक्ष्मसाम्परायिककी होती है । प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक संयत कृष्टियोके असंख्यात बहु भागोका वेदन करता है । अप्रथम अचरिम समयोमै अर्थात् प्रथम और अन्तिम समयको छोड़कर शेष समयोंमें जो अपूर्व कृष्टियों की हैं, वे सब प्रथम समयमे उदीर्ण हो जाती है । जो कृष्टियाँ प्रथम समयमे की गई है उनके अनायसे अर्थात् ऊपरसे असंख्यातवे भाग को छोड़कर और जो कृष्टियाँ अन्तिम समयमे की गई हैं, उनके जघन्य कृष्टिसे लेकर असंख्यातवें भाग को छोड़कर शेष सब कृष्टियाँ उदीर्ण हो जाती हैं । उसी समयमें असंख्यातगुणित श्रेणीके द्वारा सर्व कृष्टियोमे स्थित प्रदेशाको उपशान्त करता है । २७१-२७८ ॥
ताम्रपत्रवाली प्रतिमे किडीओ सव्चाओ' से लेकर आगेके समस्त तूत्राशको टीकामे सम्मिलित कर दिया गया है । ( देखो पृ० १८६४ )
+ ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'थोवूणओ' पदसे आगे 'कोहोद एणुवट्टिदस्स पढस समय लोभवेद्गस्स वादरसांपराइयस्स' इतने टीकांशको भी सूत्रमे सम्मिलित कर दिया गया है । ( देखो पृ० १८६५ )