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गा० १२३]
उपशामना-भेद-निरूपण गोदएण । २९६. एवमुवसामगस्स परूवणा विहासा समत्ता ।
२९७. एत्तो सुत्तविहासा । २९८. तं जहा । २९९.'उवसामणा कदिविधा' त्ति ? उवसामणा दुविहा करणोवसामणा अकरणोवतामणा च । ३००. जा सा अकरणोवसामणा तिस्से दुवे णामधेयाणि अकरणोवसामणा त्ति वि अणुदिण्णोवसायणा त्ति वि । ३०१. एसा कम्मपवादे । ३०२. जा सा करणोवसामणा सा दुविहा देसकरणोवसामणा'
विशेषार्थ-जो प्रकृतियाँ शुभ-अशुभ परिणामोके द्वारा बन्ध या उदयको प्राप्त होती हैं, उन्हे परिणाम-प्रत्यय कहते हैं । इसीका दूसरा नाम गुण-प्रत्यय भी है। जो कर्मप्रकृतियाँ भवके निमित्तसे उदयमें आती है, उन्हें भव-प्रत्यय कहते हैं । सूत्रमे 'नाम' ऐसा सामान्यपद कहनेपर भी यहाँ उदयमे आनेवाली अर्थात वेदन की जानेवाली प्रकृतियोका ग्रहण करना चाहिए । उपशान्तकषायवीतरागके मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर कार्मणशरीर, छह संस्थानोंमेंसे कोई एक संस्थान, औदारिकशरीर-आंगोपांग, आदिके तीन संहननोमेसे कोई एक संहनन, रूप, रस, गंध, वर्णमेंसे कोई एक-एक, अगुरुलघु, उपघात परघात, उच्छ्वास, दोनो विहायोगतियोंमेसे कोई एक, बस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर अस्थिर, शुभ-अशुभ और सुस्वर-दुःस्वर, इन तीन युगलोमेसे एक-एक, आदेय, यशःकीर्ति
और निर्माण, इन प्रकृतियोका उदय रहता है । इनमे तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्ण, गंध, रस, शीत, उष्ण और स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श, अगुरुलघु, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग, आदेय, यश कीर्ति और निर्माण नामकर्म, इतनी प्रकृतियाँ परिणाम-प्रत्यय हैं। सूत्र-पठित 'गोत्र' पदसे यहाँ उच्चगोत्रका ग्रहण करना चाहिए। इन सब परिणाम-प्रत्ययवाली नामकर्म
और गोत्रकर्मकी प्रकृतियोका अनुभागोदयकी अपेक्षा उपशान्तकषायवीतराग अवस्थित वेदक होता है । किन्तु जो सातावेदनीय आदि भवप्रत्ययवाली प्रकृतियाँ हैं, उसके अनुभागको यह उपशान्तकषायवीतराग षड्वृद्धि हानिके क्रमसे वेदन करता है, ऐसा अनुक्त अर्थ भी 'परि. णामप्रत्यय' पदसे सूचित किया गया है।
चूर्णिसू०-इस प्रकार उपशामककी प्ररूपणा-विभाषा समाप्त हुई ॥२९६॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे गाथा-सूत्रोंकी विभाषा की जाती है । वह इस प्रकार है 'उपशामना कितने प्रकारकी है' ? उपशामना दो प्रकारकी है-एक करणोपशामना और दूसरी अकरणोपशामना । इनमें जो अकरणोपशामना है, उसके दो नाम हैं-अकरणोपशामना
और अनुदीर्णोपशामना । यह अकरणोपशामना कर्मप्रवाद नामक आठवें पूर्वमे विस्तारसे वर्णन की गई है । जो करणोपशामना है वह भी दो प्रकारकी है-देशकरणोपशामना और
१ कम्मपवादो णाम अट्ठमो पुब्बाहियारो, जत्थ सव्वेसि कम्माण मूलुत्तरपयडिभेयभिण्णाण दव्व. खेत्त काल भावे समस्सियूण विवागपरिणामो अविवागपजाओ च बहुवित्थरो अणुवण्णिदो, तत्थ एसा अकरणोवसामणा दट्ठन्वा तत्थेदिस्से पबंवेण परूवणोवलभादो । जयध
२ दसणमोहणीये उवसामिदे उदयादिकरणेसु काणि वि करणाणि उवसंताणि, काणि वि करणाणि अणुवसताणि तेणेसा देसकरणोवसामणा त्ति भण्णदे । जयध०
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