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कसाय पाहुड सुत्त [१४ चारित्रमोह-उपशामनाधिकार ३५६. 'कं करणं वोच्छिज्जदि अयोच्छिण्णं च होइ कं करणं' त्ति विहासा । ३५७. तं जहा । ३५८. अट्टविहं ताव करणं । जहा-अप्पसत्थउवसामणाकरणं णिधत्तीकरणं णिकाचणाकरणं बंधणकरणं उदीरणाकरणं ओकड्डणाकरणं उक्कड्डणाकरणं संकमणकरणं च । ८ । एवमट्ठविहं करणं *।
३५९. एदेसिं करणाणमणियट्टिपढमसमए सव्वकम्माणं पि अप्पसत्थउवसामणाकरणं विधत्ती करणं णिकाचणाकरणंच वोच्छिण्णाणि । ३६०. सेसाणि ताधे आउगवेदणीयवज्जाणं पंच वि करणाणि अत्थि । ३६१. आउगस्स ओवट्टणाकरणमत्थि,
___ अव क्रमप्राप्त 'केचिरमुवसामिज्जदि' इस तीसरी गाथाकी विभाषा छोड़कर 'कं करणं वोच्छिज्जदि' इस चौथी गाथाकी विभापा करनेके लिए चूर्णिकार प्रतिज्ञा करते हैं । ऐसा करनेका कारण यह है कि चौथी गाथाकी विभाषा कर देनेपर तीसरी गाथाके अर्थका व्याख्यान प्रायः हो ही जाता है।
चूर्णिसू०- 'कहॉपर कौन करण व्युच्छिन्न हो जाता है और कहॉपर कौन करण अव्युच्छिन्न रहता है' इस चौथी गाथाकी विभाषा की जाती है। वह इस प्रकार है-करण आठ प्रकारके हैं-अप्रशस्तोपशामनाकरण, निधत्तीकरण, निकाचनाकरण, बन्धनकरण, उदीरणाकरण, अपकर्षणाकरण ( अपवर्तनाकरण ), उत्कर्षणाकरण ( उद्वर्तनाकरण ) और संक्रमणकरण (८) । इस प्रकारसे आठ करण होते हैं ॥३५६-३५८॥
विशेषार्थ-इस सूत्र-द्वारा करणके आठ भेद बतलाये गये हैं। कर्मवन्धादिके कारणभूत जीवके शक्ति-विशेषरूप परिणामोको करण कहते है। उनमेसे अप्रशस्तोपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचितकरणका स्वरूप पहले वतला आये है। शेष करणोका स्वरूप इस प्रकार है-मिथ्यात्वादि परिणामोसे पुद्गल द्रव्यको ज्ञानवरणादिरूप परिणमाकर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशरूपसे बाँधनेको बन्धनकरण कहते है । उदयावलीसे बाहिर स्थित कर्मद्रव्यका अपकर्षण करके उदयावलीमे लानेको उदीरणाकरण कहते हैं। कर्मोंकी स्थिति
और अनुभागके घटानेको अपकर्पणाकरण और उनके बढ़ानेको उत्कर्षणाकरण कहते है । विवक्षित कर्मके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशका अन्य प्रकृतिरूपसे परिणमन करनेको संक्रमणकरण कहते हैं।
चूर्णिसू०-इन आठो करणोमेसे अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयसे सभी कर्मोंके अप्रशस्तोपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण व्युच्छिन्न हो जाते है । उस समय आयु और वेदनीकर्मको छोड़कर शेष कर्मोंके अवशिष्ट पॉचो ही करण होते है । आयुकर्मका
१ बंधण-सकमणुव्वणा य अववणा उदीरणया ।
उवसामणा निधत्ती निकाचणा च त्ति करणाइ ॥ २ ॥ कम्मपयडी
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'एवमट्टविहं करणं' इस सूत्राशको टोकामें सम्मिलित कर दिया है । (देखो पृ० १८८४)