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गा० १२३ ] प्रदेशापेक्षया नपुंसकवेदादि-अल्पवहुत्व-निरूपण ७११ उदीरिज्जति ताओ तत्तियाओ चेव । ३३३. उदिण्णाओ विसेसाहियाओ। ३३४. जट्ठिदि-उदयो उदीरणा संतकम्मं च विसेसाहियाओ।
__३३५. अणुभागेण बंधो थोवो । ३३६. उदयो उदीरणा च अणंतरणा । ३३७. संकमो संतकम्मं च अणंतगुणं । ३३८. किट्टीओ वेदेंतस्स बंधो पत्थि । ३३९. उदयो उदीरणा च थोवा । ३४०. संकमो अणंतगुणो । ३४१. संतकस्ममणंतगुणं ।
३४२ एत्तो पदेसेण णसयवेदस्स पदेसउदीरणा अणुक्कस्स-अजहण्णा थोवा । ३४३.जहण्णओ उदओ असंखेज्जगुणो । ३४४.उक्कस्सओ उदयो विसेसाहिओ । ३४५. जहण्णओ संकमो असंखेज्जगुणो। ३४६ जहण्णयं उवसामिज्जदि असंखेज्जगुणं । ३४७. जहण्णयं संतकम्ममसंखेज्जगणं । ३४८. उक्कस्सयं संकामिज्जदि असंखेज्जगुणं । ३४९ उक्कस्सगं उवसामिज्जदि असंखेज्जगुणं । ३५०. उक्कस्सयं संतकम्ममसंखेज्जगुणं । ३५१. एदं सव्वं अंतरदुसमयकदे णबुंसयवेदपदेसग्गस्स अप्पाबहुअं।
३५२. इत्थिवेदस्स वि णिरवयवमेदयप्पात्रहुअमणुगंतव्वं । ३५३. अट्ठकसायछण्णोकसायाणमुदयमुदीरणं च मोत्तूण एवं चेव वत्तव्यं । ३५४. पुरिसवेद-चदुसंजलणाणं च जाणिदूण णेदव्वं । ३५५. णवरि बंधपदस्स तत्थ सव्वत्थोवत्तं दहव्वं । हैं । जो स्थितियाँ उदीरणा की जाती हैं, वे उतनी ही हैं। उदीर्ण स्थितियाँ विशेष अधिक हैं । यत्स्थितिक-उदय, उदीरणा और सत्कर्म विशेष अधिक है ॥३२८-३३४॥
चूर्णिसू०-अनुभागकी अपेक्षा बन्ध सबसे कम है। बन्धसे उदीरणा और उदय अनन्तगुणा है । उदयसे संक्रमण और सत्कर्म अनन्तगुणा है । कृष्टियोंको वेदन करनेवाले जीवके लोभकषायका बन्ध नही होता है । उसके उदय और उदीरणा सबसे कम होती है । इससे संक्रमण अनन्तगुणा होता है । संक्रमणसे सत्कर्म अनन्तगुणा होता है ॥३३५-२४१॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे प्रदेशकी अपेक्षा वर्णन करेंगे-नपुंसकवेदकी अनुत्कृष्टअजघन्य प्रदेश-उदीरणा सबसे कम होती है। इससे जघन्य उदय असंख्यातगुणित है । इससे उत्कृष्ट उदय विशेष अधिक है। इससे जघन्य संक्रमण असंख्यातगुणित है। इससे उपशान्त किया जानेवाला जघन्य द्रव्य असंख्यातगुणित है । इससे जघन्य सत्कर्म असंख्यातगुणित है । इससे संक्रान्त किया जानेवाला उत्कृष्ट द्रव्य असंख्यातगुणित है। इससे उत्कृष्ट सत्कर्म असंख्यातगुणित है। यह सब अन्तरकरणके दो समय पश्चात् होनेवाले नपुंसकवेदके प्रदेशागका अल्पबहुत्व कहा ॥३४२-३५१॥
चूर्णिसू०-स्त्रीवेदका भी यही अल्पवहुत्व अविकलरूपसे जानना चाहिए । आठो मध्यम कपाय और हास्यादि छह नो कषायोका अल्पवहुत्व भी उदय और उदीरणाको छोड़फर इसी प्रकारसे कहना चाहिए । पुरुषवेद और चारो संज्वलन-कषायोका अल्पवहुत्व जान फरके लगाना चाहिए । उनके अल्पवहुत्वमे बन्धपद सबसे कम होता है, इतनी विशेषता जानना चाहिए ॥३५२-३५५।।