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कसाय पाटुड सुत्त [ १४ चारित्रमोह-उपशामनाधिकार पडिआगालो वोच्छिण्णो । २२३. पडिआवलियाए एक्कम्हि समए सेसे माणसंजलणस्स दो आवलियसमयणबंधे मोत्तण सेसं तिविहस्स माणस्स पदेससंतकम्मं चरिमसमय. उवसंतं । २२४. ताधे माण-माया-लोभसंजलणाणं दुमासहिदिगो बंधो । २२५. सेसाणं कम्माणं डिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
२२६. तदो से काले मायासंजलणयोकडियूण मायासंजलणस्स पढमहिदि करेदि । २२७. ताधे पाए तिविहाए मायाए उवसामगो। २२८. माया-लोभसंजलणाणं द्विदिवंधो दो मासा अंतोमुहुत्तेण ऊणया । २२९. सेसाणं कम्माणं द्विदिवंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । २३०. सेसाणं कम्माणं द्विदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेज्जदिमागो । २३१. जं तं माणसंतकम्ममुदयावलियाए समय॒णाए तं मायाए त्थिबुक्कसंकमेण उदए विपचिहिदि ।
२३२. जे माणसंजलणस्स दोहमावलियाणं दुसमयूणाणं समयपवद्धा अणुवसंता ते गुणसेडीए उवसामिज्जमाणा दोहिं आवलियाहिं दुसमयूणाहिं उवसामिजिहिंति । व्युच्छिन्न हो जाते हैं । प्रत्यावलीमें एक समय शेष रहनेपर संज्वलनमानके एक समय कम दो आवलीप्रमाण समयप्रबद्धोको छोड़कर शेष तीन प्रकारके मानका प्रदेशसत्त्व अन्तिम समयमें उपशान्त हो जाता है। अर्थात् इस स्थलपर तीनो प्रकारके मानका स्थितिसत्त्व, अनुभागसन्नव और प्रदेशसत्त्व संज्वलनमानके नवकवद्ध उच्छिष्ठावलीको छोड़कर सर्वोपशमनाके द्वारा उपशमको प्राप्त हो जाता है। उस समय संज्वलनमान, माया और लोभकपायका स्थितिवन्ध दो मास है और शेष कर्मोंका स्थितिवन्ध संख्यात सहस्र वर्ष है ॥२२१-२२५॥
चूर्णिस०-इसके एक समय पश्चात् संज्वलनमायाका अपकर्षण कर संज्वलनमायाकी प्रथमस्थितिको करता है, अर्थात् मायाकपायका वेदक हो जाता है। इस स्थल पर वह तीन प्रकारकी मायाका उपशामक होता है, अर्थात् मायाका उपशमन प्रारम्भ करता है। उस समय संज्वलनमाया और संज्वलनलोभका स्थितिवन्ध एक अन्तर्मुहूर्तसे कम दो मास है। शेप कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात सहस्र वर्प है। इसी समय शेष कर्मोंका स्थितिकांडक पल्योपमका संख्यातवॉ भाग है। चरमसमयवर्ती मानवेदकके द्वारा जो मानकषायका स्थितिसत्त्व एक समय कम उद्यावलीप्रमाण अवशिष्ट रहा था, वह स्तिबुकसंक्रमणके द्वारा मायाकषायके उदयमें विपार्कको प्राप्त होगा ॥२२६-२३१॥
- विशेषार्थ-विवक्षित प्रकृतिका उदयस्वरूपसे समान स्थितिवाली अन्य प्रकृति में जो संक्रमण होता है, उसे स्तिबुकसंक्रमण कहते हैं।
__ चूर्णिसू०-संज्वलनमानके जो दो समय कम दो दो आवलीप्रमाण समयप्रवद्ध अनुपशान्त हैं, वे गुणश्रेणीके द्वारा उपशमको प्राप्त होते हुए दो समय कम दो आवलीप्रमाणकालसे उपशमको प्राप्त हो जावेंगे। जो कर्म-प्रदेशाग्र संज्वलन मायाकषायमें संक्रमण
'१ को स्थिवुक्कसकमो णाम ? उदयसरूवेण समट्टिदीए जो संकमो सो त्थिवुक्कसकमो त्ति भण्णदे ।
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