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कसाय पाहुड सुत्त [११ दर्शनमोहक्षपणाधिकार स्साणि द्विदाणि त्ति । पवाइज्जतेण उवदेसेण अट्ट वस्साणि सम्मत्तस्स सेसाणि, सेसाओ द्विदीओ आगाइदाओ त्ति । ५९. एदम्मि डिदिखंडए णिहिदे ताधे जहण्णगो सम्मामिच्छत्तस्स डिदिसंकमो, उक्कस्सगो पदेससंकयो । सम्मत्तस्स उक्कस्सपदेससंतकम्मं ।
६०. अहवस्स-उवदेसेण परूविज्जिहिदि । ६१. तं जहा । ६२. अपुवकरणस्स पडमसमए पलिदोवमस्स संखेज्जभागिगं हिदिखंडयं ताव जाव पलिदोवमहिदिसंतकम्म जादं । पलिदोवये ओलुत्ते पलिदोवमस्स संखेज्जा भागा आगाइदा । तम्हि गदे सेसस्स संखेज्जा भागा आगाइदा । एवं संखेज्जाणि द्विदिखंडयसहस्साणि गदाणि । तदो दूरावकिट्टी पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागे संतकम्मे सेसे तदो द्विदिखंडयं से सस्स असंखेज्जा भागा। एवं ताव सेसस्स असंखेज्जा भागा जाव मिच्छत्तं खविदं ति । सम्मामिच्छत्तं पि खतस्स सेसस्स असंखेज्जाभागा जाव सम्मामिच्छत्तं पि खविज्जमाणं खविदं, संछुब्भमाणं संछुद्ध। ताधे चेव सम्मत्तस्स संतकम्ममहवस्सहिदिगं जादं । ६३. ताधे चेव दंसणमोहणीयक्खवगो त्ति अण्णइ । वर्ष अवशिष्ट रहती है । किन्तु प्रवाह्यमान उपदेशसे सम्यक्त्वप्रकृतिकी स्थिति आठ वर्षप्रमाण शेष रहती है, शेष सर्व स्थितियाँ स्थितिकांडकघातोसे नष्ट हो जाती है। सम्यग्मिथ्यात्वके इस अन्तिम स्थितिकांडकघातके सम्पन्न होनेपर उस समय सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम, और उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। तथा उसी समय सम्यक्त्वप्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशसत्त्व होता है ।।५८-५९॥
चूर्णिस०-सम्यक्त्वप्रकृतिकी आठ वर्षप्रमाण स्थितिका निरूपण करनेवाले प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार आगेकी प्ररूपणा की जायगी। वह इस प्रकार है-अपूर्वकरणके प्रथम समयमे आरम्भ होनेवाला, पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाणका धारक स्थितिकांडकघात मिथ्यात्वकर्मके पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्त्व होनेतक प्रारम्भ रहता है। पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्त्वके अवशिष्ट रह जानेपर पल्योपमके संख्यात वहुभाग स्थितिकांडकरूपसे घात करनेके लिए ग्रहण किये जाते है । उसके भी व्यतीत होनेपर पल्योपमके शेष रहे हुए एक भागके भी बहुभाग स्थितिकांडकरूपसे घात करनेके लिए ग्रहण किये जाते हैं। इस प्रकार संख्यातसहस्र स्थितिकांडक व्यतीत होते हैं । तत्पश्चात् पल्योपमके संख्यातवे भागप्रमाण मिथ्यात्वकी स्थितिके शेप रहनेपर दूरापकृष्टि नामक स्थिति आती है। तब स्थितिकांडकका प्रमाणपल्योपमके अवशिष्ट एक भागके असंख्यात बहुभाग-प्रमाण है । इस प्रकार स्थितिकांडकका यह पल्योपमके अवशिष्ट भागके असंख्यात वहुभागरूप प्रमाण मिथ्यात्वके क्षय होनेतक जारी रहता है । तत्पश्चात् सम्यग्मिध्यात्वको भी क्षय करते हुए अवशिष्ट स्थितिसत्त्वके असंख्यात बहुभाग स्थितिकांडकरूपसे घात करनेके लिए तब तक ग्रहण करता है, जब तक कि क्षपण किया जानेवाला सम्यग्मिथ्यात्व भी क्षय कर दिया जाता है और उदयावली को छोड़कर. संक्रम्यमाण द्रव्य सर्वसंक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वप्रकृतिमे संक्रान्त किया जाता है। उस समय