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१३-संजमलद्धि-अत्याहियारो
१. लद्धी तहा चरित्तस्सेत्ति अणिओगद्दारे पुव्वं गमणिज्जं सुत्तं । २. तं । जहा । ३. जा चेव संजमासंजमे मणिदा गाहा सा चेव एत्थ वि कायव्वा । ४.चरिमसमयअधापवत्तकरणे चत्तारि गाहाओ । ५. तं जहा । ६. संजमं पडिवज्जमाणस्स परिणामो केरिसो भवे० (१)। ७. काणि वा पुत्ववद्धाणि (२)। ८. के अंसे झीयदे पुव्वं० ( ३.)। ९. किं डिदियाणि कम्माणि० ( ४ ) । १०. एदाओ सुत्तगाहाओ विहासियूण तदो सजमं पडिवज्जमाणगस्स उवक्कमविधिविहासा ।
१३ संयमलब्धि-अर्थाधिकार
चूर्णिसू०-चारित्रकी लब्धि अर्थात् संयमलब्धि नामक अनुयोगद्वारमे पहले गाथारूप सूत्र ज्ञातव्य है । वह इस प्रकार है-जो गाथा पहले संयमासंयमलब्धि नामक अनुयोगद्वारमें कही गई है, वही यहाँ भी प्ररूपण करना चाहिए ॥१-३॥
विशेषार्थ-श्रीगुणधराचार्यने संयमासंयम और संयमलब्धि इन दोनो अनुयोगद्वारोंका वर्णन करनेवाली वह एक ही गाथा कही है। उस गाथामें संयमलब्धिकी सूचनामात्र देकर परिणामोंकी उत्तरोत्तर वृद्धि और पूर्व बद्ध कर्मोंकी उपशामनाका उल्लेख कर उनकी प्ररूपणाका संकेत किया गया है। अतएव संयमासंयमलब्धिमें वर्णित प्रकारसे यहाँ भी उनका वर्णन करना चाहिए। यहॉपर केवल संयमासंयमलब्धिके स्थानपर संयमलब्धिके नामका उल्लेख करना आवश्यक है ।
__चूर्णिस०-संयमको ग्रहण करनेके लिए उद्यत जीवके अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें पूर्वोक्त चारो प्रस्थापन-गाथाएँ ज्ञातव्य हैं। वे इस प्रकार हैं संयमको प्राप्त करनेवाले जीवका परिणाम कैसा होता है, उसके कौनसा योग, कषाय, उपयोग, लेश्या और वेद होता है ? (१)। संयमको प्राप्त करनेवाले जीवके पूर्वबद्ध कर्म कौन-कौनसे हैं और कौन-कौनसे नवीन कर्म बॉधता है ? उसके कितने कर्म उदयमे आ रहे हैं और कितनोकी उदीरणा करता है ? (२)। कौन-कौन कर्म उसके बंध या उदयसे व्युच्छिन्न होते है और कब कहॉपर अन्तर करके वह संयमलब्धिको प्राप्त करता है ? (३)। उसके किस किस स्थितिवाले कर्म होते हैं और वह किस किस अनुभागमें किसका अपवर्तन करके किस स्थानको प्राप्त करता है ? (४)। इन चारो सूत्र-गाथाओकी विभाषा करके तत्पश्चात संयमको प्राप्त होनेवाले जीवके उपक्रमविधिकी विभाषा करना चाहिए ॥४-१०॥