________________
१४ चरित्तमोहोवसामणा - अत्थाहियारो
१. चरितमोहणीयस्स उवसामणाए पुव्वं गमणिज्ज' सुतं । २. तं जहा । (६३) उवसामणा कदिविधा उवसामो कस्स कस्स कम्मस्स । कं कम्म उवसंतं अणउवसंतं च कं कम्मं ॥ ११६ ॥ (६४) कदिभावसामिज्जदि संकमणमुदीरणा च कदिभागो ।
कदिभागं वा बंधदि हिदि- अणुभागे पदेसग्गे ॥ ११७ ॥ (६५) के चिरमुवसामिज्जदि संकमणमुदीरणा च केवचिरं ।
केवचिरं वसंतं अणउवसंतं च केवचिरं ॥ ११८ ॥ (६६) कं करणं वोच्छिज्जदि अव्वोच्छिष्णं च होड़ कं करणं । कं करणं उवसंतं अणउवसंतं च कं करणं ॥ ११९ ॥
१४ चारित्रमोहोपशामना - अर्थाधिकार
चूर्णिसू० - चारित्रमोहनीयकी उपशामनामें पहले गाथासूत्र जानने योग्य है । वह इस प्रकार है ॥ १-२ ॥
उपशामना कितने प्रकारकी होती है ? उपशम किस-किस कर्मका होता है ? किस-किस अवस्था - विशेषमें कौन-कौन कर्म उपशान्त रहता है और कौन-कौन कर्म अनुपशान्त रहता है ? ॥ ११६ ॥
चारित्रमोहनीयकर्मकी स्थिति, अनुभाग और प्रदेशाग्रोंका किस समय कितना भाग उपशमित करता है, कितना भाग संक्रमण और उदीरणा करता है, तथा कितना भाग बाँधता है ? ॥११७॥
चारित्र मोहनीयकर्मकी प्रकृतियों का कितने काल तक उपशमन करता है, संक्रमण और उदीरणा कितने काल तक होती है, तथा कौन कर्म कितने काल तक उपशान्त या अनुपशान्त रहता है ? ॥११८॥
किस अवस्थामें कौन करण व्युच्छिन्न हो जाता है और कौन करण अन्युच्छिन्न रहता है ? तथा किस अवस्था विशेषमें कौन करण उपशान्त या अनुपशान्त रहता है ? ।।११९ ।।