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कसाय पाहुड सुस्त [१४ चारित्रमोह-उपशामनाधिकार ५९. एवं तीइंदिय-बीइ दियद्विदिवंधसमगो ठिदिवंधो । ६०. एइंदियठिदिवंधसमगो ठिदिबंधो। ६१. तदो द्विदिवंधपुधत्तेण णामा-गोदाणं पलिदोवम-द्विदिगो द्विदिवंधो। ६२. णाणावरणीय-दसणवरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं च दिवड्डपलिदोवममेत्तहिदिगो बंधो। ६३. मोहणीयस्स वेपलिदोवमद्विदिगो वंधो । ६४. एदम्हि काले अदिच्छिदे* सबम्हि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेण ठिदिवंधेण ओसरदि । ६५. णामा-गोदाणं पलिदोवमद्विदिगादो बंधादो अण्णं जं द्विदिवंधं वंधहिदि सो हिदिवंधो संखेज्जगुणहीणो । ६६.सेसाणं कम्माणं द्विदिवंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागहीणो।
६७. तदोप्पहुडि णामा-गोदाणं द्विदिवंधे पुण्णे संखेज्जगुणहीणो द्विदिवंधो होइ । सेसाणं कम्माणं जान पलिदोवमद्विादिगं बंध ण पावदि ताव पुण्णे विदिबंधे पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागहीणो हिदिबंधो । ६८. एवं द्विदिवंधसहस्सेसु गदेसु णाणासदृश सौ सागरोपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है। पुनः स्थितिवन्धपृथक्त्वके वीतनेपर त्रीन्द्रिय. जीवके स्थितिवन्धके सदृश पचास सागरोपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । पुनः स्थितिवन्धपृथक्त्वके वीतनेपर द्वीन्द्रियजीवके स्थितिवन्धके सदृश पच्चीस सागरप्रमाण स्थितिवन्ध होता है । पुनः स्थितिबन्धपृथक्त्वके बीतनेपर एकेन्द्रियजीवके स्थितिवन्धके सदृश एक सागरोपमप्रमाण स्थितिवन्ध होता है। तत्पश्चात् स्थितिवन्धपृथक्त्वके व्यतीत होनेपर नाम और गोत्रकर्मका पल्योपमस्थितिवाला वन्ध होता है। उस समय ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तरायका डेढ़ पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है और मोहनीयकर्मका दो पल्योपमकी स्थितिवाला बन्ध होता है । इस कालमें और इससे पूर्व अतिक्रान्त सर्व कालमे पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धसे अपसरण करता है, अर्थात् यहाँ तक सर्व कर्मों के स्थितवन्धापसरणका प्रमाण पल्योपमका संख्यातवॉ भाग है। पल्योपमकी स्थितिवाले बन्धसे जो नाम और गोत्र कर्मके अन्य बन्धको बॉधेगा, वह स्थितिबन्ध संख्यातगुणित हीन है । शेष कर्मोंका स्थितिवन्ध पूर्व स्थितिवन्धसे पल्योपमका संख्यातवाँ भाग हीन है ॥५४-६६॥
विशेषार्थ-इस स्थल पर सर्व कर्मोंके स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना चाहिए-नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे कम है। इससे ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे मोहनीयकर्मका स्थितिवन्ध विशेष अधिक है।
__ चूर्णिसू०-यहॉसे लेकर नाम और गोत्रके स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर संख्यातगुणा हीन अन्य स्थितिबन्ध होता है। शेष कर्मोंका जब तक पल्योपमकी स्थितिवाला वन्ध नहीं प्राप्त होता है, तब तक एक स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर जो अन्य स्थितिवन्ध होता है, वह पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन है। इस प्रकार सहस्रों स्थितिवन्धोके बीतनेपर ज्ञानावरणीय, दर्शना
9 ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'अहिच्छिदें पाठ मुद्रित है। (देखो पृ० १८२५) ध: ताम्रपत्रवाली प्रतिमे इसके अनन्तर [ठिदिवंधो] इतना पाठ और भी मुद्रितहै । (देखो पृ० १८२५)