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कसा पाहुड सुत [ १४ चारित्रमोह उपशामनाधिकार
जादो वेदणीयस्स द्विदिवंधो ताधे चेव णामा-गोदाणं द्विदिबंधो विसेसाहिओ जादो । ११४. एदेण अप्पाचहुअविहिणा संखज्जाणि हिदिबंध सहस्त्राणि काढूण जाणि पुण कम्माणि वज्झति ताणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । ११५. तदो असंखेज्जाणं समयबद्धाणमुदीरणा च । ११६ तदो संखेज्जेसु ठिदिबंध सहस्सेसु मणपज्जवणाणावरणीय - दाणंतराइयाणमणुभागो वंधेण देसघादी होइ ।
११७. तदो संखेज्जेसुट्ठिदिबंधेसु गदेसु ओहिणाणावरणीयं ओहिंदंसणावरणीयं लाभंतराइयं च बंधेण देसघादि करेदि । ११८ तदो संखेज्जेसु ट्ठिदिबंधेसु गदेसु सुदणाणावरणीयं अचक्खुदंसणावरणीयं भोगंतराइयं च बंधेण देसघादिं करेदि । ११९. तदो संखेज्जे द्विदिवंधेसु गदेसु चक्खुदंसणावरणीयं बंधेण देसघादिं करेदि । १२०. तदो संखेज्जेसुट्ठिदिबंधेसु गदेसु आभिणिवोहियणाणावरणीयं परिभोगंतराइयं च बंधेण देसघादि करेदि । १२१ तदो संखेज्जेसु ठिदिबंधेसु गदेसु वीरियंतराइयं बंधेण देसघादि करेदि । १२२. एदेसिं कम्माणमखवगो अणुवसामगो सन्चो सव्वधादि बंधदि । १२३. देसु कम्मे देसवादीसु जादेसु विट्ठिदिबंधो मोहणीये थोवो । १२४. णाणावरणदंसणावरण- अंतराइएस ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । १२५ णामा- गोदेसु ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । १२६. वेदणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ ।
हुआ एक साथ असंख्यातगुणित हीन हो जाता है, तभी नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध विशेष हीन हो जाता है । इस अल्पबहुत्व के क्रमसे संख्यात सहस्र स्थितिबन्धोको करके पुनः जो कर्म वधते है, वे पल्योपमके संख्यातवे भागप्रमाण होते हैं । तत्पश्चात् असंख्यात समय प्रबद्धोकी उदीरणा होती है । तत्पश्चात् संख्यात सहस्र स्थितिबन्धोके व्यतीत होनेपर मनःपर्ययज्ञानावरणीय और दानान्तराय कर्मका अनुभाग बन्धकी अपेक्षा देशघाती हो जाता है ॥१०८-११६॥
चूर्णि सू० - तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोके बीतने पर अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तरायकर्मको बन्धकी अपेक्षा देशघाती करता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोके बीतने पर श्रुतज्ञानावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय और भोगान्तराय कर्मको वन्धकी अपेक्षा देशघाती करता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितित्रन्धो के बीतने पर चक्षुदर्शनावरणीय कर्मको बन्धकी अपेक्षा देशघाती करता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोके व्यतीत होनेपर आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय और परिभोगान्तराय कर्मको बन्धकी अपेक्षा देशघाती करता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोके बीतने पर वीर्यान्तराय कर्मको बन्धकी अपेक्षा देशघाती करता है । सर्व अक्षपक और अनुपशामक इन कमोंके सर्वघाती अनुभागको बाँधते हैं । इन कर्मोंके देशघाती हो जानेपर भी मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सबसे कम होता है । इससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । इससे नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । इससे वेदनीय कर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है ।। ११७-१२६॥