________________
कसाय पाहुड सुच [ १२ संयमासंयमलब्धि-क्षपणाधिकार लद्वी च संजमासंजमस्सेत्ति समचमणिओगद्दारं ।
विशेषार्थ - संयमासं यमलब्धि क्षायिकभाव है, क्षायोपशमिकभाव है, अथवा औद"यिक भाव है ? इस प्रकारकी शंकाका उपर्युक्त सूत्रोंसे ऊहापोह पूर्वक समाधान किया गया है । उसका खुलासा यह है कि संयतासंयतके अप्रत्याख्यानावरण कषायका तो उदय होता नहीं है, अतः संयमासंयमलब्धिको औदयिकभाव नहीं माना जा सकता है । यदि कहा जाय कि संयतासंयत के प्रत्याख्यानावरण कपायका उदय रहता है, अतः उसे औदयिक मान लेना चाहिए ? तो चूर्णिकार इस आशंकाका समाधान करते हैं कि प्रत्याख्यानावरण कपाय तो संयमासंयमका आवरण या घात आदि कुछ भी करनेमें असमर्थ है, क्योकि उसका कार्य संयमका घात करना है, न कि संयमासंयमका । इसलिए उसके उदय होनेपर भी संयमासंयमलब्धिको औदयिक नहीं माना जा सकता है । यहाँ अनन्तानुबन्धीके उदयकी तो संभावना ही नहीं है, क्योंकि उसका उदय दूसरे गुणस्थानमें ही विच्छिन्न हो चुका है । अतएव पारिशेषन्याय से संयतासंयत के चारो संज्वलनो और नवो नोकषायोका उदय रहता है । ये सभी कषाय देशघाती हैं, अतएव उनका उदय संयमासंयमलब्धिको भी देशघाती वना देता है । यहाँ देशघाती संज्वलनादि कषायोके उदयसे उत्पन्न होनेवाले संयमासंयम-लब्धिरूप कार्यमें संज्वलनादि कषायरूप कारणका उपचार करके उसे देशघाती कहा गया है । इस प्रकार चार संज्वलन और नव नोकषायोके सर्वधाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षयसे, तथा इन्हींके देशघातिस्पर्धक के उदयसे संयमासंयम लब्धिको क्षायोपशमिक माना गया है । यदि संयतासंयत प्रत्याख्यानावरणकषायका वेदन करते हुए संन्वलनादि शेष कपायोका वेदन न करे, तो संयमासंयमलब्धिको क्षायिक मानना पड़ेगा ? ऐसा कहनेका अभिप्राय यह है कि संयतासंयतके संयमासंयमको घात करनेवाले अप्रत्याख्यानावरण कषायका तो उदय है ही नहीं । और प्रत्याख्यानावरण कषायका उदय है, सो वह संयमका भले ही घात करे, पर संयमासंयमका वह उपघात या अनुग्रह कुछ भी न करनेमें समर्थ नहीं है । अतः प्रत्याख्यानावरणकषायका वेदन करते हुए यदि संज्वलनादि कषायोका उदय न माना जाय, तो संयमासंयमलब्धि क्षायिक सिद्ध होती है । किन्तु आगममें उसे क्षायिक माना नहीं गया है, अतः असंदिग्धरूपसे वह क्षायोपशमिक ही सिद्ध होती है ।
इस प्रकार संयमासंयमलब्धि नामक बारहवाँ अर्थाधिकार समाप्त हुआ ।
૬૮