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.. कसाय पाहुड सुत्त । १२ संयमासंयमलब्धि-अर्थाधिकार . ५८. जहणिया लद्धी कस्स १५९. तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स से काले मिच्छत्तं गाहिदि त्ति ।
६०. अप्पाबहुअं । ६१. तं जहा । ६२, जहणिया संजमासंजमलद्धी थोवा । ६३. उक्कस्सिया संजयासंजमलद्धी अणंतगुणा ।
६४. एत्तो संजदासंजदस्स लद्धिट्ठाणाणि वत्तइस्सामो । ६५. तं जहा । ६६. जहण्णयं लट्ठिाणमणंताणि फद्दयाणि । ६७. तदो विदियलद्धिाणमणंतभागुत्तरं । ६८. एवं छटाणपदिदलट्ठिाणाणि । ६९. असंखेज्जा लोगा। ७०. जहण्णए लद्धिट्ठाणे संजमासंजमं ण पडिवज्जदि । ७१. तदो असंखेज्जे लोगे अइच्छिदूण जहण्णयं पडिवज्जमाणस्स पाओग्गं लट्ठिाणमणंतगुणं । - ७२. तिव्य-मंददाए अप्पाबहुअं । ७३. सव्वमंदाणुभागं जहण्णगं संजयासंज मस्स लट्ठिाणं । ७४. मणुसस्स पडिवदमाणयस्स जहण्णयं लट्ठिाणं तत्तियं चेव । ७५. तिरिक्खजोणियस्स पडिवदमाणयस्स जहण्णयं लद्धिट्ठाणमणंतगुणं । ७६. तिरि
शंका-जघन्य संयमासयमलब्धि किसके होती है ? ॥५८॥ . , समाधान-जघन्य संयमासंयमलब्धिके योग्य संक्लेशको प्राप्त और अनन्तर समयमे मिथ्यात्वको ग्रहण करनेवाले संयतासंयतके जघन्य संयमासंयमलब्धि होती है ॥५९।।
__ चूर्णिसू०-अव अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इस प्रकार है-जघन्य संयमासंयमलब्धि अल्प है और उससे उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धि अनन्तगुणित है ॥६०-६३॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे संयतासंयतके लब्धि-स्थान कहेगे। वे इस प्रकार हैंजघन्य संयमासंयमलब्धिस्थान अनन्त स्पर्धकरूप है। इससे द्वितीय संयमासंयमलब्धिस्थान अनन्तवें भागसे अधिक है। इस प्रकार षट्स्थानपतित संयमासंयम-लब्धिस्थान होते हैं । उनका प्रमाण असंख्यात लोक है। जघन्य संयमासंयम लब्धिस्थानमे कोई भी तिर्यंच या मनुष्य संयमासंयमको नही प्राप्त करता है। ( क्योकि यह सर्व जघन्य स्थान ऊपरसे गिरनेवाले जीवके ही संभव है।)- इसके पश्चात् असंख्यात लोकप्रमाण संयमासंयम-लब्धिस्थानोको उल्लंघन करके प्रतिपद्यमान अर्थात् संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवके प्राप्त करनेके योग्य जघन्य लब्धिस्थान होता है ॥६४-७१।।
चूर्णिसू०-अब इन लब्धिस्थानोकी तीव्र मन्दताका अल्पवहुत्व .. कहते है। वह इस प्रकार है-संयमासंयमका जघन्य लब्धिस्थान -सवसे सन्द अनुभागवाला है। (यह महान् संक्लेशको प्राप्त होकर मिथ्यात्वमें जानेवाले संयतासंयतके अन्तिम समयमे होता है । ) नीचे गिरनेवाले मनुष्यका जघन्य लब्धिस्थान उतना ही है। इससे नीचे गिरनेवाले तिर्यग्योनिक जीवका जघन्य लब्धिस्थान अनन्तगुणित है। इससे प्रतिपतमान तिर्यग्योनिकका
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'अच्छिदूण' पाठ मुद्रित है । ( देखो पृ० १७९०)। पर वह अशुद्ध है, क्योकि यहॉपर 'उल्लंघन करके ऐसा अर्थ अपेक्षित है । 'रह करके' यह अर्थ नहीं।