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गा० ११५ ] संयमासंयमलन्धि-स्वामित्व-निरूपण
६६५ च एदाओ छप्पि अद्धाओ तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ । ४२. गुणसेही संखेज्जगणा । ४३. जहणिया आवाहा संखेज्जगुणा । ४४. उक्कस्सिया आवाहा संखेज्जगुणा । ४५. जहण्णयं द्विदिखंडयमसंखेज्जगुणं। ४६. अपुवकरणस्स पहमं जहण्णयं डिदिखंडयं संखेज्जगणं । ४७. पलिदोवमं संखेज्जगुणं । ४८. उकस्सयं द्विदिखंडयं संखेज्जगणं । ४९. जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । ५०.उकस्सओ हिदिबंधो संखेजगुणो । ५१. जहण्णयं हिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । ५२. उक्कस्सयं हिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । ,
५३. संजदासंजदाणमट्ठ अणियोगद्दाराणि । तं जहा । संतपरूवणा दव्वपमाणं खेत्तं फोसणं कालो अंतरं भागाभागो अप्पाबहुअंच। ५४. एदेसु अणिओगद्दारेसु समत्तेसु तिव्व-मंददाए सामित्तमप्पाबहुअंच कायव्वं ।।
५५. सामित्तं । ५६. उक्कस्सिया लद्धी कस्स ? ५७. संजदस्त सव्वविसुद्धस्स से काले संजमग्गाहयस्स ।। त्वका उदयकाल ये छहो परस्पर तुल्य और संख्यातगुणित हैं (७)। इससे संयतासंयतसम्बन्धी गुणश्रेणी-आयाम संख्यातगुणित है (८)। इससे एकान्तानुवृद्धिकालके अन्तिम समयमें होनेवाली चरम स्थितिबन्धकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणित है (९)। इससे अपूर्वकरणके प्रथम समय-सम्बन्धी स्थितिबन्धकी उत्कृष्ट आबाधा संख्यातगुणित है (१०) । इससे एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम समयका जघन्य स्थितिकांडक असंख्यातगुणित है । (क्योंकि, वह पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है ) (११) । इससे अपूर्वकरणका प्रथम जघन्य स्थितिकांडक संख्यातगुणित है (१२) । इससे पल्योपम संख्यातगुणित है (१३) । पल्योपमसे अपूर्वकरणका प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। (क्योकि वह सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण होता है) (१४) । इससे एकान्तानुवृद्धिके अन्तमें संभव जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है (१५)। इससे अपूर्वकरणके प्रथम समयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है (१६)। इससे एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम समयका जघन्य स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है (१७) । इससे अपूर्वकरणके प्रथम समयमें होनेवाला उत्कृष्ट स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है (१८) (क्योकि उसका प्रमाण अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपम माना गया है। ) ॥३३-५२॥
चूर्णिसू०-संयतासंयतोंके विशेष परिज्ञानार्थ आठ अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं। वे इस प्रकार हैं-सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भागाभाग और अल्पबहुत्व । इन आठो अनुयोगद्वारोका निरूपण समाप्त होनेपर तीव्र-मन्दताके विशेष ज्ञानके लिए स्वामित्व और अल्पवहुत्व इन दो अनुयोगद्वारोका वर्णन करना चाहिए ॥५३-५४॥
चूर्णिसू०-उनमेंसे पहले स्वामित्व कहते हैं ॥५५॥ शंका-उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धि किसके होती है ? ॥५६॥
समाधान-अनन्तर समयमें ही सकलसंयमको ग्रहण करनेवाले सर्व-विशुद्ध संयतासंयत मनुष्यके होती है ॥५७॥