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गा० ११४] सम्यक्त्यप्रकृति-स्थितिगत-मतभेद-निरूपण
५२. एवं पलिदोवमस्स असंखेज्जभागिगेसु बहुएसु द्विदिखंडयसहस्सेसु गदेसु तदो सम्मत्तस्स असंखेज्जाणं समयपवद्धाणमुदीरणा । ५३. तदो बहुसु हिदिखंडएसु गदेसु मिच्छत्तस्स आवलियबाहिरं सव्वमागाइदं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो सेसो । ५४. तदो द्विदिखंडए णिहायमाणे णिट्ठिदे मिच्छत्तस्स जहण्णओ हिदिसंकमो, उक्कस्सओ पदेससंकमो । ताधे सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सगं पदेससंतकम्मं । ५५. तदो आवलियाए दुसमयूणाए गदाए मिच्छत्तस्स जहण्णयं हिदिसंतकम्मं । ५६. मिच्छत्ते परमसमयसंकंते सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमसंखेज्जा भागा आगाइदा । ५७ एवं संखेज्जेहिं हिदिखंडएहिं गदेहिं सम्मामिच्छत्तमावलियबाहिरं सव्वमागाइदं।
५८. ताधे सम्मत्तस्स दोण्णि उवदेसा। के वि भणंति संखेज्जाणि वस्ससह
चूर्णिस०-इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाणवाले अनेक सहस्र स्थितिकांडक-घातोंके व्यतीत होनेपर तत्पश्चात् सम्यक्त्वप्रकृतिके असंख्यात समंयप्रबद्धोकी उदीरणा आरम्भ होती है । तदनन्तर बहुतसे स्थितिकांडक-धातोके व्यतीत हो जानेपर उदयावलीसे बाहिर स्थित मिथ्यात्वका स्थितिसत्त्वरूप सर्व द्रव्य घात करनेके लिए ग्रहण किया गया । ( तथा, सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके पल्योपमके असंख्यात बहुभागोको घात करनेके लिए ग्रहण करता है।) तब सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका स्थितिसत्त्व पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण शेष रहता है। तत्पश्चात् मिथ्यात्वके समाप्त होने योग्य अन्तिम स्थितिकांडकके क्रमसे समाप्त होनेपर उसी कालमें मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम और उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । तथा उसी समय सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्त्व होता है। तत्पश्चात् दो समय कम आवली-प्रमाणकाल बीतनेपर मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है, अर्थात् जब वह दो समय कम आवली-प्रमाण मिथ्यात्वकी स्थितियोको क्रमसे गलाकर जिस समय दो समय कालवाली एक स्थिति अवशिष्ट रह जाती है उस समय मिथ्यात्वकर्मका सर्व-जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। सर्वसंक्रमणके द्वारा मिथ्यात्वके संक्रमण करनेपर प्रथम समयमे सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यात बहुभागोको घात करनेके लिए ग्रहण करता है, अर्थात् मिथ्यात्वकर्मके द्रव्यका सर्वसंक्रमण हो जानेपर सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिकांडक-घात प्रारंभ करता है । इस प्रकार वह क्रमशः घात करता हुआ संख्यात स्थितिकांडकोके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वके उदयावलीसे वाहिर स्थित सर्व द्रव्यको घात करनेके लिए ग्रहण करता है, अर्थात् उस समय सम्यग्मिथ्यात्वकी केवल एक उदयावली ही शेष रहती है ॥५२-५७॥
चूर्णिस०-उस समय अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्वके एक आवलीप्रमाण स्थितिसत्त्व शेष रह जानेपर सम्यक्त्वप्रकृतिके स्थितिसत्त्वके विषयमे दो प्रकारके उपदेश मिलते है । अप्रवाह्यमानपरम्पराके कितने ही आचार्य कहते हैं कि उस समय सम्यक्त्वप्रकृतिकी स्थिति संख्यातसहस्र
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