________________
६५२
कसाय पाहुड सुच [११ दर्शनमोहक्षपणाधिकार से काले असंखेज्जगुणं जाव गुणसेडिसीसयं ताव असंखेज्जगणं । तदो उपरिमाणंतरद्विदीए वि असंखेज्जगुणं देदि । तदो विसेसहीणं । ६९. एवं जाव दुचरिमडिदिखंडयं ति।
७०. सम्मत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडए णिट्ठिदे जाओ द्विदीओ सम्मत्तस्स सेसाओ ताओ द्विदीओ थोवाओ। ७१. दुचरिमट्ठिदिखंडयं संखेज्जगुणं । ७२. चरिमद्विदिखंडयं संखेज्नगुणं । ७३. चरिमडिदिखंडयमागाएंतो गुणसेडीए संखेज्जे भागे आगाएदि, अपणाओ च उवरि संखेज्जगुणाओ द्विदीओ।
७४. सम्मत्तस्स चरिमविदिखंडए पहमसमयमागाइदे ओवट्टिन्जमाणासु द्विदीसु जं पदेसग्गमुदए दिज्जदि तं थोवं । से काले असंखेज्जगुणं ताव जाच ठिदिखंडयस्स जहणियाए द्विदीए चरिपसमय-अपत्तो त्ति । ७५. सा चेव द्विदी गुणसंहिसीसयं जादं । ७६. जमिदाणिं गुणसेडिसीसयं तदो उपरिमाणंतराए द्विदीए असंखेज्जगुणहीणं। तदो विसेसहीणं जाव पोराणगुणसेडिसीसयं ताव । तदो उपरिमाणंतरहिदीए
गुणित प्रदेशाग्रको देता है । इस प्रकार गुणश्रेणीके शीर्प तक असंख्यातगुणित प्रदेशाग्रको देता है। इससे ऊपरकी अनन्तर स्थितिमें भी असंख्यातगुणित प्रदेशापको देता है। तत्पश्चात् विशेष-हीन देता है । इस प्रकार यह क्रम द्विचरम स्थितिकांडकके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए ॥६४-६९॥
चूर्णिस०-सम्यक्त्वप्रकृतिके अन्तिम स्थितिकांडकके समाप्त होनेपर जो स्थितियाँ सम्यक्त्वप्रकृतिकी शेष रही हैं, वे स्थितियाँ अल्प हैं। उनसे द्विचरम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है । उससे अन्तिम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। सम्यक्त्वप्रकृतिके अन्तिम स्थिति. कांडकको बात करनेके लिए ग्रहण करता हुआ इस समयमें पाये जानेवाले गुणश्रेणी आयामके संख्यात बहुभागो तथा संख्यातगुणित अन्य उपरिम स्थितियोको भी ग्रहण करता है ।। ७०-७३॥
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृतिके अन्तिम स्थितिकांडकके प्रथम समयमें घात करनेके लिए ग्रहण करनेपर अपवर्तन की जानेवाली स्थितियोमेंसे जो प्रदेशाग्र उदयमें दिया जाता है, वह अल्प है । अनन्तर समयमे असंख्यातगुणित प्रदेशाग्रको देता है। इस क्रमसे तब तक असंख्यातगुणित प्रदेशाग्रको देता है जब तक कि स्थितिकांडककी जघन्य अर्थात् आदि स्थितिका अन्तिम समय नहीं प्राप्त होता है। वह स्थिति ही गुणश्रेणी-शीर्ष कहलाती है। जो इस समय गुणश्रेणी-शीर्प है उससे उपरिम अनन्तर स्थितिमें असंख्यातगुणित हीन प्रदेशाग्रको देता है। इसके पश्चात् तब तक विशेष हीन प्रदेशाग्रको देता है जब तक कि पुरातन गुणश्रेणी-शीर्ष
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'ताच' पदके आगे 'असंखेजगुण' इतना अधिक पाठ और मुद्रित है ।
( देखो पृ० १७६२)