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१२ संजमा संजमलद्धि-अत्थाहियारो
१. देसवर त अणि ओगद्दारे एया सुत्तगाहा । २. तं जहा । (६२) लगी य संजमासंजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स । वड्डावड्डी उवसामणा य तह पुव्ववद्वाणं ॥ ११५ ॥
१२ संयमासंयमलब्धि - अर्थाधिकार
चूर्णि सू० – देशविरत नामक संयमासंयमलब्धि अनुयोगद्वारमें एक सूत्रगाथा है । वह इस प्रकार है ॥ १-२॥
संयमासंयम अर्थात् देशसंयमकी लब्धि, तथा चारित्र अर्थात् सकलसंयमकी लब्धि, परिणामोंकी उत्तरोत्तर वृद्धि, और पूर्व बद्ध कर्मोंकी उपशामना इस अनुयोगद्वारमें वर्णन करने योग्य है ॥ ११५ ॥
विशेषार्थ - वास्तवमे यह गाथा संयमासंयमलब्धि और संयमलब्धि नामक दो अधिकारोंमे निबद्ध है, जैसा कि गाथासूत्रकार स्वयं ही ग्रन्थके प्रारम्भमे कह आये हैं । परन्तु यहॉपर संयमासंयमलब्धिके स्वतन्त्र अधिकार मे कहनेकी विवक्षासे चूर्णिकारने सामान्यसे ऐसा कह दिया है कि इस अनुयोगद्वार में एक गाथा प्रतिबद्ध है, क्योकि दोनो अनुयोगद्वारोंका एक साथ वर्णन किया नहीं जा सकता था । हिंसादि पापोके एक देश त्यागको संयमासंयम कहते हैं । संयमासंयमके घातक अप्रत्याख्यानावरण कपायके उदद्याभावसे प्राप्त होनेवाली परिणामोकी विशुद्धिको संयमासंयमलब्धि कहते हैं । हिंसादि सर्व पापोके सर्वथा त्यागको सकलसंयम कहते हैं । सकलसंयमके घातक प्रत्याख्यानावरण कषायके उदयाभाव से उपलब्ध होनेवाली विशुद्धिको संयमलब्धि कहते है । इन दोनोमेंसे प्रकृत अनुयोगद्वारमे केवल संयमासंयमलब्धिका ही वर्णन किया जायगा | अलब्ध- पूर्व संयमासंयम या संयमलब्धिके प्राप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त काल तक प्रतिसमय उत्तरोत्तर अनन्तगुणित क्रमसे परिणामोकी विशुद्धि-वृद्धिको 'वड्डावड्डी' वृद्धापवृद्धि या 'बढ़ावढ़ी' कहते हैं । देशचारित्र या सकलचारित्रके प्रतिबन्धक, पूर्व-वद्ध कर्मोंके अनुदयरूप अभावको यहाँ 'उपशामना' नामसे ग्रहण किया गया है | इसके चार भेद हैं- प्रकृति - उपशामना, स्थिति - उपशामना, अनुभाग-उपशामना और प्रदेशोपशामना | देशसंयम और सकलसंयमके घात करनेवाली प्रकृतियोकी उपशामनाको प्रकृति-उपशामना कहते हैं । इन्ही प्रकृतियोंकी, अथवा सभी कर्मों की अन्त:कोड़ाकोड़ीसे ऊपरकी स्थितियोके उदद्याभावको स्थिति उपशामना कहते हैं । चारित्र के अवरोधक