________________
गा० ९४ ]
उपशामक - योग्यता -निरूपण
६१९
सूक्ष्म, पर्याप्त और साधारणशरीर, इन तीनोंका परस्पर संयुक्तरूपसे बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर सूक्ष्म, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इन तीनोंका परस्पर-संयुक्तरूपसे बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर बादर, पर्याप्त और साधारणशरीर, इन तीनोका परस्पर संयुक्तरूपसे बन्धविच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर वादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, एकेन्द्रिय, आताप, और स्थावरनाम, इन छह प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर द्वीन्द्रियजाति और पर्याप्तनामका वन्ध विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धा पसरण होनेपर त्रीन्द्रियजाति और पर्याप्तनामका बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितित्रन्धापसरण होनेपर चतुरिन्द्रियजाति और पर्याप्तनामका वन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धा पसरण होनेपर असंज्ञिपंचेन्द्रिय जाति और पर्याप्तनामका वन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योत इन तीन प्रकृतियोंका एकसाथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर नीचगोत्रका बन्ध-विच्छेद होता है । यहाँ इतना विशेष जानना कि सातवी पृथिवीके नारकीकी अपेक्षा तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र, इन प्रकृतियोका बन्ध-विच्छेद नहीं होता है, इसीलिए चूर्णिसूत्रमे इन प्रकृतियोके बन्ध-विच्छेदका निर्देश नहीं किया गया । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भाग, दुःस्वर और अनादेय, इन प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपसपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर हुंडकसंस्थान और असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, इन दोनो प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धासरण होनेपर नपुंसक वेदका बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धासरण होनेपर वामनसंस्थान और कीलकसंहनन इन दोनो प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर कुब्जकसंस्थान और अर्धनाराचसंहनन इन दो प्रकृतियोका एक साथ बन्धव्युच्छेद होता है - पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर स्त्रीवेदका बन्ध विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर स्वातिसंस्थान और नाराचसंहनन इन दो प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसारण होनेपर न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान और वज्रनाराचसंहनन, इन दो प्रकृतियोका एक साथ बन्धविच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिक अंगोपांग, वज्रवृषभनाराचसंहनन, और मनुष्यगति-प्रायोग्यानुपूर्बी, इन पाँच प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है । यह सब बन्धविच्छेदका वर्णन तिर्यंच और मनुष्योकी अपेक्षासे किया है । क्योकि, देव और नारकियोमे इन प्रकृतियोको बन्ध