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कसाय पाहुड सुत [११ दर्शनमोह-क्षपणाधिकार १७. एदाओ चत्तारि सुत्तगाहाओ विहासियूण अपुवकरणपडमसमए आढवेयो । १८. अधापवत्तकरणे ताव णत्थि हिदिघादो वा, अणुभागधादो वा, गुणसेडी वा, गुणसंकमो वा । १९.णवरि विसोहीए अणंतगुणाए ववदि । सुहाणं कस्मैसाणमणंतगुणवड्डिबंधो, असुहाणं कम्माणमणंतगुणहाणिबंधो । बंधे पुण्णे पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण हायदि । २०. एसा अधापवत्तकरणे परूवणा ।
२१. अपुव्वकरणस्स पढमसमए दोण्हं जीवाणं हिदिसंतकस्मादो द्विदिसंतकम्म तुल्लं वा, विसेसाहियं वा, संखेज्जगुणं वा । द्विदिखंडयादो वि द्विदिखंडयं दोण्हं जीवाणं तुल्लं वा विसेसाहियं वा संखेज्जगुणं वा । २२. तं जहा । २३. दोण्हं जीवाणमेको कसाए उवसामेयूण खीणदसणमोहणीयो जादो । एक्को कसाए अणुरसामेण खीणदसणमोहणीओ जादो । जो अणुवसामेयूण खीणदसणमोहणीओ जादो तस्स डिदिसंतकम्म संखेज्जगुणं । २४ जो पुव्वं दंसणमोहणीयं खवेदूण पच्छा कसाए उनसामेदि वा, जो किस स्थिति-अनुभाग-विशिष्ट कौन-कौनसे कर्मोंका अपवर्तन करके किस-किस स्थानको प्राप्त करता है, तथा अवशिष्ट कर्म किस स्थिति और अनुसागको प्राप्त होते हैं, इन प्रश्नोका निर्णय भी उपशामकके समान ही करना चाहिए । यह चौथी गाथाकी विभाषा है ।
चूर्णिसू०-इन उपर्युक्त चारो सूत्रगाथाओंकी विभापा करके अपूर्वकरणके प्रथम समयमें प्रकृत प्ररूपणा आरम्भ करना चाहिए। अधःप्रवृत्तकरणमे किसी भी कर्मका स्थिति. घात, अनुभागघात, गुणश्रेणी या गुणसंक्रमण नहीं होता है । वह केवल अनन्तगुणी विशुद्धिसे प्रतिसमय बढ़ता रहता है। उस समय वह शुभ कर्म-प्रकृतियोका अनन्तगुणित वृद्धिसे युक्त अनुभागको वॉधता है और अशुभ कर्म-प्रकृतियोके अनुभागको अनन्तगुणित हीन वॉधता है । अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण एक-एक स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर दूसरा-दूसरा स्थितिवन्ध पल्योपमके संख्यातवे भागसे हीन बॉधता है। यह सब प्ररूपणा अधःप्रवृत्तकरणके कालमे जानना चाहिए ।।१७-२०॥
अव अपूर्वकरणकी प्ररूपणा दो जीवोके एक साथ अपूर्वकरणमे प्रवेश करनेकी अपेक्षा की जाती है
चूर्णिस०- अपूर्वकरणके प्रथम समयमें वर्तमान दो जीवोमेसे किसी एकके स्थितिसत्कर्मसे दूसरे जीवका स्थितिसत्कर्म तुल्य भी हो सकता है, विशेप अधिक भी हो सकता है और संख्यातगुणित भी हो सकता है। उन्हीं दोनो जीवोमे एकके स्थितिखंडसे दूसरे जीवका स्थितिखंड तुल्य भी हो सकता है, विशेष अधिक भी हो सकता है और संख्यातगुणित भी हो सकता है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-उपयुक्त दोनो जीवोमेसे एक तो उपशमश्रेणीपर चढ़कर और कषायोका उपशमन करके दर्शनमोहकी क्षपणाके लिए समुद्यत हुआ । दूसरा कषायोका उपशमन नहीं करके दर्शनमोहकी क्षपणाके लिए अभ्युद्यत हुआ । इनमेसे जो कषायोका उपशमन नहीं करके दर्शनमोहकी क्षपणाके लिए अभ्युद्यत हुआ है,