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कसाय पाट जुत्त [१० सम्यक्त्व-अर्थाधिकार ७२. अणियट्टिकरणे समए समए एकेक्कपरिणामट्ठाणाणि अणंतगुणाणि च । ७३. एदमणियट्टिकरणस्स लक्षणं । ७४. अणादियमिच्छादिहिस्स उवसामगस्स परूवणं वत्तइस्मामो। ७५. तं जहा । ७६. अधापवत्तकरणे हिदिखंडयं वा अणुभागखंडयं वा गुणसेही वा गुणसंकमो वा णत्थि, केवलमणंतगुणाए विसाहीए विसुज्झदि । ७७. अप्पसत्थसम्मंस जे बंधइ ते दुहाणिये अणंतगुणहीणे च । पसत्थकम्मसे जे बंधइ ते चउट्ठाणिए अणंतगुणे च समये समये । ७८. द्विदिवंधे पुण्णे पुण्णे अण्णं द्विदिबंध पलिदोवयस्म संखेज्जदिभागहीणं बंधदि । प्रकारसे अपूर्वकरणके कालमे अनुकृष्टिरचना नहीं होती है, क्योकि यहाँ प्रत्येक समयमें ही जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी होती है। फिर भी यह क्रम निर्वर्गणाकांडक तक चलता है, ऐसा कहनेका अभिप्राय यह है कि यहॉपर प्रत्येक समयमे ही निर्वर्गणाकांडक जानना चाहिए। इसका कारण यह है कि विवक्षित किसी भी समयके परिणाम उपरितन किसी भी समयके साथ समान नहीं होते है, किन्तु असमान या अपूर्व ही अपूर्व होते हैं । निर्वर्गणाकांडक किसे कहते है ? इस शंकाका समाधान यह है कि जितने काल आगे जाकर निरुद्ध या विवक्षित समयके परिणामोकी अनुकृष्टि विच्छिन्न हो जाती है, उसे निर्वर्गणाकांडक कहते हैं।
अब अनिवृत्तिकरणका लक्षण कहते हैं
चूर्णिसू०-अनिवृत्तिकरणके कालमे समय-समयमे अर्थात् प्रत्येक समयमें एक-एक ही परिणामस्थान होते हैं अर्थात् अनिवृत्तिकरणकालके जितने समय हैं, उतने ही उसके परिणामोकी संख्या है। तथा वे उत्तरोत्तर अनन्तगुणित होते हैं। अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयके परिणामसे द्वितीय समयका परिणाम अनन्तगुणी विशुद्धिसे युक्त होता है । यह क्रम अन्तिम समय तक जानना चाहिए । यह अनिवृत्तिकरणका लक्षण है ।।७२-७३॥
चूर्णिस०-अत्र उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले अनादिमिथ्यादृष्टि जीवकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-अनादिमिथ्यादृष्टिके अधःप्रवृत्तकरणमे स्थितिकांडकघात, अनुभागकांडकयात, गुणश्रेणी और गुणसंक्रम नहीं होता है। वह केवल प्रतिसमय अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होता हुआ चला जाता है। यह जीव जिन अप्रशस्त कांशोको वॉधता है, उन्हे द्विस्थानीय अर्थात् निम्ब और कांजीररूप और समय-समय अनन्तगुणहीन अनुभागशक्तिसे युक्त ही वॉधता है। जिन प्रशस्त कर्मांशोको बॉधता है, उन्हे गुड़, खांड आदि चतुःस्थानीय और समय समय अनन्तगुणी अनुभागशक्तिसे युक्त वॉधता है। अधःप्रवृत्तकरणकालमे स्थितिवन्धका काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है। एक एक स्थितिबन्धकालके पूर्णपूर्ण होनेपर पल्योपमके संख्यातवे भागसे हीन अन्य स्थितिवन्धको वॉधता है । इस प्रकार
2 ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'समये समये' इतने सूत्राशको टीकामें सम्मिलित कर दिया है ( देखो पृ० १७१५ पंक्ति २)।