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कसाय पाहुड सुन्त
| १० सम्यक्त्व अर्थाधिकार
५४. एसिं करणाणं लक्खणं । ५५. अधापवत्तकरण पढमसपए जहण्णिया विसोही थोवा । ५६. विदियसमए जहणिया विसोही अनंतगुणा । ५७. एवमं तोमुत्तं । ५८. तदो परमसमए उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा । ५९. जम्हि जहणिया विसोही गिट्टिदा, तदो उवरिमसपए जहण्णिया विसोही अनंतगुणा । ६० विदियसमए उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा । ६१. एवं णिव्वग्गणखंडयमंतो मुहुत्तद्धमेत्तं अधापवत्तकरणचरिमसमयो त्ति । ६२. तदो अंतोहुत्तमोसरियूण जम्हि उक्कस्सिया विसोही गिट्टिदा, तत्तो | उवरिमसमए उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा । ६३. एवमुकस्सिया विसोही दव्या जाव अधापवत्तकरणचरिमसमयो ति । ६४. एदमधापवत्तकरणस्स लक्खणं । उपशम अवस्थाको प्राप्त होकर अवस्थित रहता है, उसे उपशामनाद्धा या उपगमकाल कहते है |
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चूर्णिसू०- - अब इन तीनो करणोका लक्षण कहते है - अधः प्रवृत्तकरण के प्रथम समयमे जघन्य विशुद्धि सबसे कम होती है। प्रथम समयसे द्वितीय समयमे जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । ( द्वितीय समयसे तृतीय समयसे जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है | ) इस प्रकार यह क्रम अन्तर्मुहूर्त तक चलता है । तत्पश्चात् प्रथम समयमे उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । जिस समयमे जघन्य विशुद्धि समाप्त हो जाती है, उससे उपरिम समयमें, अर्थात् प्रथम निर्वर्गणाकांडक के अन्तिम समय के आगे के समयमे जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे द्वितीय समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । इस प्रकार यह क्रम निर्वर्गणाकांडकमात्र अन्तर्मुहूर्तकालप्रमाण अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक चलता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्तकाल अपसरण करके जिस समयमें उत्कृष्ट विशुद्धि समाप्त होती है, उससे अर्थात् द्विचरमनिर्वर्गणाकांडक के अन्तिम समयसे - उपरिम समयमे अर्थात् अन्तिम निर्वर्गणाकांडके प्रथम समयमे उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी “होती है । इस प्रकारसे उत्कृष्ट विशुद्धिका यह क्रम अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए । यह अधःप्रवृत्तकरणका लक्षण है ॥५४-६४॥
विशेषार्थ - अधःप्रवृत्त करणके स्वरूपको और ऊपर बतलाये गये अल्पबहुत्वको एक दृष्टान्त-द्वारा स्पष्ट करते हैं- दो जीव एक साथ अवःकरणपरिणामको प्राप्त हुए। उनमे एक तो सर्व-जघन्य विशुद्धिके साथ अधःप्रवृत्तकरणको प्राप्त हुआ और दूसरा सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिके साथ । प्रथम जीवके प्रथम समयमे परिणामांकी विशुद्धि सबसे मन्द होती है । इसे दूसरे समयमे उसके जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है। इससे तीसरे समयमे उसके जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि अधःप्रवृत्त
ताम्रपत्रवाली प्रतिमें इस सूत्रको ५३ न० के सूत्रकी टीकामे सम्मिलित कर दिया है (देखो पृ० १७०८ पक्ति पक्ति ) । पर ताड़पत्रीय प्रतिसे इसके सूत्रत्वकी पुष्टि हुई है ।
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'तत्तो' के स्थानपर 'तटो' पाठ मुद्रित है (देखो पृ० १७१२ ) ।