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गा० ९७]
उपशामक-विशेष स्वरूप-निरूपण (४४) उवसामगो च सव्वो णिव्वापादो तहा णिरासाणो।
उवसंते भजियव्वो णीरासाणो य खीणम्मि ॥१७॥ द्वीप और समुद्रोंमें, सर्व गुह्य अर्थात् व्यन्तर देवोंमें, समस्त ज्योतिष्क देवोंमें, सौधर्म कल्पसे लेकर नव ग्रैवेयक तकके सर्व विमानवासी देवोंमें, आभियोग्य अर्थात् वाहनादि कुत्सित कर्ममें नियुक्त वाहन देवोंमें, उनसे भिन्न किल्विषिक आदि अनुत्तम, तथा पारिषद आदि उत्तम देवोंमें दर्शनमोहनीय कर्मका उपशम होता है ॥१६॥
विशेषार्थ-यहाँ यह शंका की जा सकती है कि अढाई द्वीप-समुद्रवर्ती संख्यात या असंख्यात वर्षायुष्क गर्भज मनुष्य-तिर्यंचोके तो प्रथमोपशम सम्यग्दर्शनके उत्पन्न करनेकी योग्यता है । किन्तु अढ़ाई द्वीपसे परवर्ती जो असंख्यात द्वीप-समुद्र है और जिनमे कि त्रस जीवोका अभाव बतलाया गया है, वहॉपर भी दर्शनमोहके उपशम होनेका विधान इस गाथामें कैसे किया गया है ? इसका समाधान यह है कि जो अढ़ाई द्वीपवर्ती तिर्यंच यहॉपर - प्रथमोपशमसम्यक्त्वके उत्पन्न करनेके लिए प्रयत्न-शील थे, उन्हें यदि पूर्व भवका वैरी कोई
देव उठाकर उन असंख्यात द्वीप या समुद्रोमें जहाँ कहीं भी फेंक आवे, तो उन जीवोको वहाँ पर प्रथमोपशमसम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है। अतीत कालकी अपेक्षा ऐसा कोई द्वीप और समुद्र नहीं बचा है कि जहॉपर पूर्व-वैरी देवोके द्वारा अपहृत तिर्यंचोके दर्शनमोहका उपशम न हुआ हो । अतः सर्व द्वीप-समुद्रोमें अपहरणकी अपेक्षा दर्शनमोहके उपशमका विधान किया गया है।
दर्शनमोहके उपशामक सर्व जीव निर्व्याघात तथा निरासान होते हैं। दर्शनमोहके उपशान्त होनेपर सासादनभाव भजितव्य है। किन्तु क्षीण होनेपर निरासान ही रहता है ॥१७॥ . विशेषार्थ-दर्शनमोहके उपशमन करनेवाले जीवके जिस समय 'उपशामक' संज्ञा प्राप्त हो जाती है, उस समयके पश्चात् जब तक दर्शनमोहका उपशम नहीं हो जाता है, तब तक वह निर्व्याघात रहता है । अर्थात् सर्व प्रकारके उपद्रव, उपसर्ग या घोरसे घोर विघ्न-बाधाएँ आनेपर भी उसके दर्शनमोहका उपशम हो करके ही रहता है। अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण परिणामोके प्रारंभ हो जानेके पश्चात् संसारकी कोई भी शक्ति उसके सम्यक्त्वोत्पत्तिमें व्याघात नहीं कर सकती है । न उसका उस अवस्थामें मरण ही होता है । दर्शनमोहके उपशासकको निरासान कहनेका अर्थ यह है कि दर्शनमोहनीयका उपशमन करते हुए वह सासादन गुणस्थानको नहीं प्राप्त होता है। किन्तु दर्शनमोहके उपशान्त हो जानेपर भजितव्य है अर्थात् यदि उपशमसम्यक्त्वके कालमे कुछ समय शेप रहा है, तो वह सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है, अन्यथा नही । इसीको स्पष्ट करनेके लिए कहा गया है कि उपशमसम्यक्त्वका काल क्षीण अर्थात् समाप्त हो जानेपर निरासान अर्थात् सासादनगुण स्थानको नही प्राप्त होता