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गा० ९४ ]
पच्चीस-पदिक- अल्पबहुत्व-निरूपण
'भागपडिभागेण संकमेदि, सो विज्झादसंकमो णाम । १११. जाव गुणसंकमो ताव मिच्छत्तवज्जाणं कम्माणं ठिदिघादो अणुभागघादो गुणसेढी च ।
११२. एदिस्से परूवणाए णिट्ठिदाए इमो दंडओ पणुवीसपडिगो । ११३. सव्वत्थोवा उवसामगस्स जं चरिम- अणुभागखंडयं तस्स उक्कीरणद्धा । ११४. अपुव्चकरणस्स पढमस्स अणुभानखंडयस्स उक्कीरणकालो विसेसाहिओ । ११५. चरिट्ठदिखंडकरणकालो तह चेव द्विदिबंधकालो च दो वितुल्ला संखेज्जगुणा । ११६. अंतरकरणद्धा तम्हि चेव द्विदिबंधगद्धा च दो वि तुलाओ विसेसाहियाओ । ११७. अपुव्यकरणे ट्ठिदिखंडयउक्कीरणद्धा द्विदिबंधगद्धा च दो वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ । ११८. उसामगो जाव गुणसंकमेण सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणि पूरेदि सो कालो संखेज्जगुणो । ११९ पढमसमयउवसामगस्स गुणसे डिसीसयं संखेज्जगुणं । १२०. पढमट्टिदी संखेज्जगुणा । १२१. उवसामगद्धा विसेसाहिया । १२२. [विसेसो पुण] वे आवलियाओ समयूणाओ । १२३. अणियट्टि - अद्धा संखेज्जगुणा । १२४. अपुच्चकरणद्धा संखेज्जगुणा । गुणसंक्रमणके पश्चात् सूच्यंगुलके असंख्यातवे भागरूप प्रतिभाग के द्वारा संक्रमण करता है । इसीका नाम विध्यातसंक्रमण है । जब तक गुणसंक्रमण होता है, तब तक मिथ्यात्व ( और आयु) कर्मको छोड़कर शेष कर्मोंका स्थितिघात, अनुभागघात और गुणश्रेणीरूप कार्य होते रहते हैं ।। १०२-१११ ॥
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चूर्णिसू० - इस दर्शन मोहोपशामककी प्ररूपणा के समाप्त होनेपर यह पच्चीस पदिक अर्थात् पदोवाला अल्पबहुत्व - दंडक जानने योग्य है - दर्शनमोहनीयके उपशमन करनेवाले जीवके मिथ्यात्व कर्मका जो अन्तिम अनुभाग खंड है, उसके उत्कीरणका काल वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम है ( १ ) । इससे अपूर्वकरणके प्रथम समय में होनेवाले अनुभाग खंडका उत्कीरण काल विशेष अधिक है (१) । इससे अनिवृत्तिकरण के अन्तिम स्थितिकांडकका उत्कीरणकाल और इसी समयमे संभव स्थितिबन्धका काल ये दोनो परस्परमें समान होते हुए भी संख्यातगुणित होते हैं ( ३- ४ ) । इससे अन्तरकरणका काल और वहीं पर संभव स्थितिबन्धका काल ये दोनो परस्पर तुल्य होते हुए भी विशेष अधिक हैं (५-६)। इससे अपूर्वकरण के प्रथम समय मे होनेवाले स्थितिखंडका उत्कीरणकाल और स्थितिबन्धका काल ये दोनों परस्पर समान होते हुए भी विशेष अधिक हैं ( ७-८ ) । इससे दर्शनमोहका उपशामक जीव जब तक गुणसंक्रमणसे सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वको पूरता है, वह काल संख्यातगुणा है ( ९ ) । इससे प्रथम समयवर्ती उपशामकका गुणश्रेणीशीर्पक संख्यातगुणा है ( १० ) । इससे मिथ्यात्वकी प्रथमस्थिति संख्यातगुणी है (११) । इससे उपशामकाद्धा अर्थात् दर्शनमोहके उपशमानेका काल विशेष अधिक है । (१२) वह विशेष एक समय कम दो आवलीप्रमाण है । इससे अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है (१३) । इससे अपूर्वकरणका काल संख्यात्तगुणा है (२४) । इससे गुण