________________
गा० ९४ ]
अनिवृत्तिकरण-स्वरूप निरूपण
६२७
सेढिणिक्खेवस अग्गग्गादो [ हेट्ठा ] संखेज्जदिभागं खंडेदि । ९५. तदो अंतरं कीरमाणं कदं । ९६. तदोपहुड उचसामगोत्ति भण्णइ |
९७. मदीदो वि विदियट्टिदीदो वि आगाल - पडिआगालो' तात्र, जाव आवलियपडिआवलियाओ' सेसाओ ति । ९८. आवलिय - पडिआवलियासु सेसासु तदोपहुडि मिच्छत्तस्स गुणसेडी णत्थि । ९९. सेसाणं क्रम्माणं गुणसेठी अस्थि । १००. भागप्रमाण प्रदेशाको खंडित करता है । ( गुणश्रेणीशीर्पसे ऊपर संख्यातगुणी उपरिम स्थितियोको खंडित करता है । तथा अन्तरके लिए वहॉपर उत्कीर्ण किये गये प्रदेशाग्रको उस समय बॅधनेवाले मिथ्यात्वकर्ममे उसकी आबाधाकालहीन द्वितीयस्थिति में स्थापित करता है और प्रथमस्थितिमें भी देता है, किन्तु अन्तरकाल - सम्बन्धी स्थितियों में नहीं देता है | ) इस प्रकार किया जानेवाला कार्य किया गया, अर्थात् अन्तरकरणका कार्य सम्पन्न हुआ । अन्तरकरण समाप्त होनेके समय से लेकर वह जीव 'उपशामक' कहलाता है ९४-९६ ॥ विशेषार्थ - यद्यपि अन्तरकरण समाप्त करनेसे पूर्व भी वह जीव 'उपशामक' ही था, किन्तु चूर्णिकारने यहाॅ यह पद मध्यदीपकन्यायसे दिया है, तदनुसार यह अर्थ होता है कि अधःप्रवृत्तकरण प्रारम्भ करनेके समय से लेकर अन्तरकरण करनेके समय तक भी वह उपशामक था और आगे भी मिथ्यात्वके तीन खंड करने तक उपशामक कहलायेगा ।
॥
चूर्णिसू० - प्रथमस्थिति से भी और द्वितीयस्थिति से भी तत्र तक आगाल- प्रत्यागाल होते रहते हैं, जबतक कि आवली और प्रत्यावली शेष रहती हैं ॥९७॥
विशेषार्थ - प्रथम स्थिति और द्वितीयस्थितिका अर्थ पहले वतला आये हैं । अपकर्षण के निमित्तसे द्वितीयस्थितिके कर्म - प्रदेश के प्रथमस्थितिमें आनेको आगाल कहते है । तथा उत्कर्षण के निमित्तसे प्रथमस्थिति के कर्म-प्रदेशोके द्वितीयस्थितिमे जानेको प्रत्यागाल कहते हैं । सूत्रमें 'आवली' ऐसा सामान्य पद होनेपर भी प्रकरणवश उसका अर्थ 'उदयावली' करना चाहिए । उदयावलीसे ऊपर के आवलीप्रमाण कालको प्रत्यावली या द्वितीयावली कहते हैं । जब अन्तरकरण करनेके पश्चात् मिध्यात्वकी स्थिति आवलि - प्रत्यावलीमात्र रह जाती है, तब आगाल - प्रत्यागालरूप कार्य बन्द हो जाते हैं ।
चूर्णिसू० - आवली और प्रत्यावलीके शेष रह जानेपर उससे आगे मिध्यात्वकी गुणश्रेणी नही होती है, ( क्योकि उस समयमें उदयावलीसे वाहिर कर्म-प्रदेशोका निक्षेप नहीं होता है । ) किन्तु शेष कर्मोंकी गुणश्रेणी होती है । ( यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि आयुकर्मकी भी उस समय गुणश्रेणी नहीं होती है ।) उस समय प्रत्यावलीसे
१ आगालमागालो, विदियट्ठिदिपदेसाण पढमट्ठिदीए ओकड्डणावसेणागमण मिदि वृत्त होइ । प्रत्यागलन प्रत्यागालः, पढमठिदिपदेसाण विदियट्ठिदीए उक्कडणावसेण गमणमिदि भणिद होइ । तदो पढम विदियट्ठिदिपदेसाणमुक्कड्डुणोकडणावसेण परोप्परविसयस कमो आगाल पडिभागालो त्ति घेत्तव्यो । जयध० २ तत्थावलिया त्ति वुत्ते उदयावलिया घेत्तव्वा । पडिआवलिया त्ति एदेण वि उदयावलियादो उवरिमविदियावलिया गहेयव्वा । जयध०
}