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कसाय पाहुड सुत्त
[ १० सम्यक्त्व अर्थाधिकार अणुभागखंडयं च द्विदिबंधगद्धा च समत्ताणि भवंति । ९०. एवं ठिदिखंडय सहस्से हिं बहुहिं गदेहिं अपुव्यकरणद्धा समत्ता भवदि । ९१. अपुव्यकरणस्स पढमसमए डिदि - संतकम्मादो चरिमसमए द्विदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं ।
९२. अणियसि पढमसमए अण्णं द्विदिखंडयं, अण्णो द्विदिबंधो, अण्णमणुभागखंडयं । ९३. एवं द्विदिखंडय सहस्सेहिं अणियट्टिअद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु अंतरं करेदि । ९४. जा तम्हि द्विदिबंधगद्धा तत्तिएण कालेण अंतरं करेमाणो गुणसमाप्त हो जाता है । इस प्रकार अनेक सहस्र स्थितिकांडक - घातो के व्यतीत हो जानेपर अपूर्वकरणका काल समाप्त हो जाता है। अपूर्वकरणके प्रथम समयमे होनेवाले स्थितिसत्त्वसे ( और स्थितिबन्धसे ) अपूर्वकरण के अन्तिम समयमे स्थितिसत्त्व ( और स्थितिबन्ध ) संख्यातगुणित हीन होता है । इस प्रकार अपूर्वकरणका काल समाप्त होता है ।। ८२-९१।
चूर्णिसू० – अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय में अन्य स्थितिखंड, अन्य स्थितिबन्ध और अन्य अनुभागकांडक-घात प्रारम्भ होता है । ( किन्तु गुणश्रेणिनिक्षेप अपूर्वकरणके समान ही प्रतिसमय असंख्यातगुणित प्रदेशो के विन्यास से विशिष्ट और गलितावशेषरूप ही रहता है । ) इस प्रकार सहस्रो स्थितिकांडक - घातो के द्वारा अनिवृत्तिकरण- कालके संख्यात बहुभागोके व्यतीत होनेपर उक्त जीव मिथ्यात्वकर्मका अन्तर करता है ।। ९२-९३॥
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विशेषार्थ - विवक्षित कर्मोंकी अधस्तन और उपरिम स्थितियोंको छोड़कर मध्यवर्ती अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियोके निषेकोंका परिणामविशेषसे अभाव करनेको अन्तरकरण कहते हैं । जब अनादिमिध्यादृष्टि जीव क्रमशः अधःकरण और अपूर्वकरणका काल समाप्त करके अनिवृत्तिकरणकाल के भी संख्यात बहु भाग व्यतीत कर लेता है, उस समय मिथ्यात्व कर्मका अन्तर्मुहूर्त काल तक अन्तरकरण करता है । अर्थात् अन्तरकरण प्रारम्भ करने के समय से पूर्व उदयमे आनेवाले मिथ्यात्वकर्मकी अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण स्थितिके निषेकोका उत्कीरण कर कुछ कर्म-प्रदेशको प्रथमस्थितिमे क्षेपण करता है और कुछ को द्वितीयस्थितिमें । अन्तरकरणसे नीचेकी अन्तर्मुहूर्त - प्रमित स्थितिको प्रथमस्थिति कहते हैं और अन्तरकरण से ऊपर की स्थिति - को द्वितीयस्थिति कहते हैं । इस प्रकार प्रतिसमय अन्तरायाम-सम्बन्धी कर्म- प्रदेशोको ऊपरनीचे की स्थितियो में तब तक क्षेपण करता रहता है, जबतक कि अन्तरायाम-सम्बन्धी समस्त निषेकोका अभाव नहीं हो जाता है । यह क्रिया एक अन्तर्मुहूर्त काल तक जारी रहती है । इस प्रकार अन्तरायामके समस्त निषेकोके प्रथमस्थिति और द्वितीयस्थिति में देनेको अन्तरकरण कहते हैं ।
चूर्णिसू०(० - उस समय जितना स्थितिबन्धका काल है, उतने कालके द्वारा अन्तरको करता हुआ गुणश्रेणिनिक्षेपके अग्राप्रसे अर्थात् गुणश्रेणीशीर्षसे लेकर नीचे ) संख्यात
१ किमंतरकरण णाम ? विवक्खियकम्माण हेट्टिमोवरिमठिदीओ मोत्तूण मज्झे अतोमुहुत्तमेत्ताणं ट्रिटदीण परिणाम विसेसेण णिसेगाणमभावीकरणम तरकरणमिदि भण्णदे । जयध०